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________________ सप्तम वक्षस्कार ] के १८३० / [ ३६७ भगवन् ! प्रतिमुहूर्त मण्डल - परिधि का कितना भाग अतिक्रान्त करता है ? गौतम ! सूर्य जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करता है, उस उस मण्डल की परिधि भाग अतिक्रान्त करता है । १०९८०० भगवन् ! नक्षत्र प्रतिमुहूर्त मण्डल - परिधि का कितना भाग अतिक्रान्त करते हैं ? गौतम ! नक्षत्र जिस जिस मण्डल का उपसंक्रमण कर गति करते हैं, उस उस मण्डल की परिधि का १८३५ / भाग अतिक्रान्त करते हैं । १०९८०० सूर्यादि-उद्गम १८३. जम्बुद्दीवे णं भंते ! दीवे सूरिआ उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति १, पाईणदाहिणमुग्गच्छ दाहिणपडीणमागच्छंत २, दाहिणपडीणमुग्गच्छ पडीणउदीणमागच्छंति ३, पडीणउदीणमुग्गच्छ उदीण - पाईणमागच्छंति ४ ? हंता गोयमा ! जहा पंचमसए पढमे उद्देसे वऽत्थि ओसप्पिणी अवट्ठिए णं तत्थ का पण्णत्ते समणाउसो ! इच्चेसा जम्बदीवपण्णत्ती सूरपण्णत्ती वत्थुसमासेणं सम्मता भवई । जम्बुद्दीवे णं भंते! दीवे चंदिमा उदीणपाईणमुग्गच्छ पाईणदाहिणमागच्छंति जहा सूरवत्तव्वया जहा पंचमंसयस्स दसमे उद्देसे जाव 'अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते समणाउसो !' इच्चेसा जम्बुद्दीवपण्णत्तो वत्थुसमासेण समत्ता भवइ । [१८३] भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्य उदीचीन- प्राचीन- उत्तर-पूर्व- ईशानकोण में उदित होकर क्या प्राचीन - दक्षिण - पूर्व-दक्षिण - आग्नेय कोण में आते हैं, अस्त होते हैं, क्या आग्नेय कोण में उदित होकर दक्षिण - प्रतीचीन- दक्षिण-पश्चिम - नैर्ऋत्य कोण में आते हैं, अस्त होते हैं, क्या नैर्ऋत्य कोण में उदित होकर प्रतीचीन - उदीचीन पश्चिमोत्तर - वायव्य कोण में आते हैं, अस्त होते हैं, क्या वायव्य कोण में उदित होकर उदीचीन - प्राचीन- उत्तरपूर्व - ईशान कोण में आते हैं, अस्त होते हैं ? हाँ, गौतम ! ऐसा ही होता है । भगवतीसूत्र के पंचम शतक के प्रथम उद्देशक में 'णेव अत्थि ओसप्पिणी, अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते' पर्यन्त जो वर्णन आया है, उसे इस सन्दर्भ में समझ लेना चाहिए। आयुष्मन् श्रमण गौतम ! जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग के अन्तर्गत प्रस्तुत सूर्य सम्बन्धी वर्णन यहाँ संक्षेप में समाप्त होता है। भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो चन्द्रमा उदीचीन - प्राचीन-उत्तर - पूर्व- ईशान कोण में उदित होकर प्राचीनदक्षिण - पूर्व-दक्षिण- आग्नेय कोण में आते हैं, अस्त होते हैं - इत्यादि वर्णन भगवतीसूत्र के पंचम शतक के दशम उद्देशक के 'अवट्ठिए णं तत्थ काले पण्णत्ते' तक से जान लेना चाहिए । आयुष्मन गौतम ! जम्बूद्वीपप्रज्ञप्ति उपांग के अन्तर्गत प्रस्तुत चन्द्र सम्बन्धी वर्णन यहाँ संक्षेप में समाप्त
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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