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________________ ३५२] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! णो तीए खित्ते किरिआ कजइ, पडुप्पणे कज्जइ, णो अणागए । सा भंते ! किं पुट्ठा कज्जइ० ? गोयमा ! पुट्ठा, णो अणापुट्ठा कज्जइ।(....सा णं भंते ! किं आई कज्जइ, मज्झे किज्जइ, पज्जवसाणे किज्जइ ? गोयमा ! आइंपि किज्जइ मज्झेवि किज्जइ पज्जवसाणेवि किज्जइ त्ति) णियमा छद्दिसिं। [१७१] भगवन् ! जम्बूद्वीप में दो सूर्यों द्वारा अवभासन आदि क्रिया क्या अतीत क्षेत्र में की जाती है या प्रत्युत्पन्न-वर्तमान क्षेत्र में की जाती है अथवा अनागत क्षेत्र में की जाती है ? गौतम ! अवभासन क्रिया अतीत क्षेत्र में नहीं की जाती, प्रत्युत्पन्न-वर्तमान क्षेत्र में की जाती है। अनागत क्षेत्र में भी क्रिया नहीं की जाती। __ भगवन् ! क्या सूर्य अपने तेज द्वारा क्षेत्र-स्पर्शन पूर्वक-क्षेत्र का स्पर्श करते हुए अवभासन आदि क्रिया करते हैं या स्पर्श नहीं करते हुए अवभासन आदि क्रिया करते हैं ? (गौतम ! वे क्षेत्र-स्पर्शनपूर्वक अवभासन आदि क्रिया करते हैं, क्षेत्र का स्पर्श नहीं करते हुए अवभासन आदि क्रिया नहीं करते। भगवन् ! वह अवभासन आदि क्रिया साठ मुहूर्तप्रमाण मण्डलसंक्रमणकाल के आदि में की जाती है या मध्य में की जाती है या अन्त में की जाती है ? गौतम ! वह आदि में भी की जाती है, मध्य में भी की जाती है और अन्त में भी की जाती है।). वह नियमतः छहों दिशाओं में की जाती है। ऊर्ध्वादि ताप १७२. जम्बुद्दीवे णं भंते । दीवे सूरिआ केवइअं खेत्तं उद्धं तवयन्ति अहे तिरिअंच? गोयमा ! एगं जोअणसयं उद्धं तवयन्ति, अट्ठारससयजोअणाई अहे तवयन्ति, सीआलीसं जोअणसहस्साइंदोण्णि अतेवढे जोअणसए एगवीसंच सट्ठिभाए जोअणस्स तिरिअंतवयन्तित्ति १३। [१७२] भगवन् ! जम्बूद्वीप में सूर्य कितने क्षेत्र को ऊर्ध्वभाग में अपने तेज से तपाते हैं-व्याप्त करते हैं ? अधोभाग में नीचे के भाग में तथा तिर्यक् भाग में तपाते हैं ? । गौतम ! ऊर्ध्वभाग में १०० योजन क्षेत्र को, अधोभाग में १८०० योजन क्षेत्र को तथा तिर्यक् भाग में ४७२६३२९/ योजन क्षेत्र को अपने तेज से तापते हैं-व्याप्त करते हैं। ऊर्बोपन्नादि १७३. अंतो णं भंते ! माणुसुत्तरस्स पव्वयस्स जे चंदिमसूरिअगहगणणक्खत्ततारारूवाणं
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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