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________________ सप्तम वक्षस्कार] [३४१ संवच्छरे। एस णं आइच्चस्स संवच्छरस्स पज्जवसाणे पण्णत्ते। [१६६] भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर-सबसे भीतर के मण्डल का उपसंक्रमण कर चाल चलता है-गति करता है. तो वह एक-एक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार करता है-गमन करता है ? ___ गौतम ! वह एक-एक मुहूर्त में ५२५१२९/ योजन को पार करता है। उस समय सूर्य यहाँ भरतक्षेत्रस्थित मनुष्यों को ४७२६३२१/ योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। वहाँ से निकलता हुआ सूर्य नव संवत्सर का प्रथम अयन बनाता हुआ प्रथम अहोरात्र में सर्वाभ्यन्तर मण्डल से दूसरे मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है। भगवन् ! जब सूर्य सर्वाभ्यन्तर मण्डल से दूसरे मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है, तब वह एक-एक मुहूर्त में कितने क्षेत्र को पार करता है ? गौतम ! तब वह प्रत्येक मुहूर्त में ५२५१०।, योजन क्षेत्र को पार करता है। तब यहाँ स्थित मनुष्यों को ४७१७९५७/ योजन तथा ६० भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ६१ भागों में से १९ भाग योजनाशं की दूरी से सूर्य दृष्टिगोचर होता है। वहाँ से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य दूसरे अहोरात्र में तीसरे आभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है। भगवन् ! जब सूर्य तीसरे आभ्यन्तर मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तो वह प्रत्येक मुहूर्त में कितना क्षेत्र पार करता है-गमन करता है ? गौतम ! वह ५२५२५/, योजन प्रति मुहूर्त गमन करता है। तब यहाँ स्थित मनुष्यों को वह (सूर्य) ४७०९६३३), योजन तथा ६० भागों में विभक्त एक योजन के एक भाग के ६१ भागों में २ भाग योजनांश की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। इस क्रम से निष्क्रमण करता हुआ सूर्य पूर्व मण्डल से उत्तर मण्डल को संक्रान्त करता हुआ १८/.. योजन मुहूर्त-गति बढ़ाता हुआ, ८४ योजन न्यून पुरुषछायापरिमित कम करता हुआ सर्वबाह्य मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है। * भगवन् ! जब सूर्य सर्वबाह्य मण्डल को उपसंक्रान्त कर गति करता है, तब वह प्रति मुहूर्त कितना क्षेत्र पार करता है गमन करता है ? ___गौतम ! वह प्रति मुहूर्त ५३०५५/ योजन गमन करता है-इतना क्षेत्र पार करता है। तब यहाँ स्थित मनुष्यों को वह (सूर्य) ३१८३१३० योजन की दूरी से दृष्टिगोचर होता है। ये प्रथम छह मास हैं। यों प्रथम छह मास का पर्यवसान करता हुआ वह सूर्य दूसरे छह मास के प्रथम अहोरात्र में सर्वबाह्य मण्डल से दूसरे बाह्य मण्डल पर उपसंक्रान्त होकर गति करता है। भगवन् ! जब सूर्य दूसरे बाह्य मण्डल पर उपसक्रान्त होकर गति करता है तो वह प्रतिमुहूर्त कितन।' क्षेत्र पार करता है-गमन करता है ?
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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