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________________ ३२२ ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र तएणं से वेसमणे देवेसक्केणं ( देविंदेण देवरण्णा आणत्तियं) विणएणं वयणं पडिसुणेइ 2त्ताजंभए देवे सद्दावेइ 2 त्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ! बत्तीसं हिरण्णकोडीओ (बत्तीसं सुवण्णकोडीओ, बत्तीसं णंदीइं, बत्तीसं भद्दाइं, सुभगे, सुभगरूवजुव्वणलावण्णे अ) भगवओ तित्थयरस्स जम्मणभवणंसि साहरह साहरित्ता एअमाणत्तिअं पच्चप्पिणह। तए णं ते जंभगा देवा वेसमणेणं देवेणं एवं वुत्ता समाणा हट्टतुट्ठ जाव खिप्पामेव बत्तीसं हिरण्णकोडीओ जाव' च भगवओ तित्थगरस्स जम्मणभवणंसि साहरंति २ त्ता जेणेव वेसमणे देवे तेणेव ( एअमाणत्तियं) पच्चप्पिणंति। तए णं से वेसमणे देवे जेणेव सक्के देविंदे, देवराया (तेणेव) उवागच्छइ २ त्ता) पच्चप्पिणइ। __तए णं से सक्के देविंदे, देवराया ३ आभिओगे देवे सद्दावेइ २ ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! भगवओ तित्थयरस्स जम्मणणयरंसि सिंघाडग जाव २ महापहपहेसु महया २ सद्देणं उग्घोसेमाणा २ एवं वदह–'हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा य देवीओ अजेणं देवाणुप्पिआ ! तित्थयरस्स तित्थयरमाऊए वा असुभं मणं पधारेइ, तस्स णं अज्जगमंजरिआ इव सयधा मुद्धाणं फुट्टउत्ति' कटु घोसेणं घोसेह २ त्ता एअमाणत्तिअं पच्चप्पिणहत्ति। तए णं ते आभिओगा देवा (सक्केणं देविंदेणं देवरण्णा एवं वुत्ता समाणा) एवं देवोत्ति आणाए पडिसुणंति २ त्ता सक्कस्स देविंदस्स, देवरणोअंतिआओ पडिणिक्खमंति २ त्ता खिप्पामेव भगवओ तित्थगरस्स जम्मणणगरंसि सिंघाडग जाव एवं वयासी-हंदि सुणंतु भवंतो बहवे भवणवइ (वाणमंतरजोइसवेमाणिया देवा य देवीओ अ) जे णं देवाणुप्पिआ ! तित्थयरस्स (तित्थयरमाऊए वाअसुभंमणं पधारेइ, तस्सणं अज्जगमंजरिआइव सयधा मुद्धाणं) फुट्टिहीतित्ति कट्ट घोसणगं घोसति २ त्ता एअमाणत्तिअं पच्चप्पिणंति। तएणंते बहवे भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिआ देवाभगवओ तित्थगरस्स जम्मणमहिमं करेंति २ त्ता जेणेव णंदीसरदीवे तेणेव उवागच्छंति २ त्ता अट्ठाहियाओ महामहिमाओ करेंति २ त्ता जामेव दिसिं पाउब्भूआ तामेव दिसिं पडिगया। [१५६] तत्पश्चात् देवेन्द्र देवराज शक्र पाँच शक्रों की विकुर्वणा करता है। एक शक्र भगवान् तीर्थंकर को अपनी हथेलियों के संपुट द्वारा ग्रहण करता है। एक शक्र भगवान् के पीछे उन पर छत्र धारण करता हैछत्र ताने रहता है। दो शक्र दोनों ओर चँवर डुलाते हैं। एक शक्र वज्र हाथ में लिये आगे खड़ा होता है। फिर शक्र अपने चौरासी हजार सामानिक देवों, अन्य-भवनपति, वानव्यन्तर, ज्योतिष्क एवं वैमानिक देवों, देवियों से परिवृत, सब प्रकार की ऋद्धि से युक्त, वाद्य-ध्वनि के बीच उत्कृष्ट त्वरित दिव्य गति द्वारा, जहाँ भगवान् तीर्थंकर का जन्म-नगर, जन्म-भवन तथा उनकी माता थी वहाँ आता है। भगवान् तीर्थंकर को उनकी माता की बगल में स्थापित करता है। वैसा कर तीर्थंकर के प्रतिरूपक को, जो माता की बगल ४४ १. देखें सूत्र संख्या २. देखें सूत्र यही देखें सूत्र संख्या ६७ देखें सूत्र संख्या ६७
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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