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पञ्चम वक्षस्कार
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के सदृश है।
(कतिपय देव पण्डकवन में मंच, अतिमंच-मंचों के ऊपर मंच बनाते हैं,) कतिपय देव पण्डक वन के मार्गों में, जो स्थान, स्थान से आनीत चन्दन आदि वस्तुओं के अपने बीज यत्र तत्र ढेर लगे होने से बाजार की ज्यों प्रतीत होते हैं, जल का छिड़काव करते हैं, उनका सम्मान करते हैं-सफाई करते हैं, उन्हें उपलिप्त करते हैं-लीपते हैं, ठीक करते हैं। यों उसे शुचि-पवित्र-उत्तम एवं स्वच्छ बनाते हैं, (काले अगर, उत्तम कुन्दरक, लोबान तथा धूप की गमगमाती महक से उत्कृष्ट सौरभमय,) सुगन्धित धूममय बनाते
कई एक वहाँ चाँदी बरसाते हैं। कई स्वर्ण, रत्न, हीरे, गहने, पत्ते, फूल, फल, बीज, मालाएँ गन्धसुगन्धित द्रव्य, वर्ण-हिंगुल आदि रंग (वस्त्र) तथा चूर्ण-सौरभमय पदार्थों का बुरादा बरसाते हैं। कई एक मांगलिक प्रतीक के रूप में अन्य देवों को रजत भेंट करते हैं, (कई एक स्वर्ण, कई एक रत्न, कई एक हीरे, कई एक आभूषण, कई एक पत्र, कई एक पुष्प, कई एक फल, कई एक बीज, कई एक मालाएँ, कई एक गन्ध, कई एक वर्ण तथा) कई एक चूर्ण भेंट करते हैं।
. कई एक तत्-वीणा आदि, कई एक वितत-ढोल आदि, कई एक घन-ताल आदि तथा कई एक शुषिर-बाँसुरी आदि चार प्रकार के वाद्य बजाते हैं।
कई एक उत्क्षिप्त-प्रथमतः समारभ्यमाण-पहले शुरू किये गये, पादात्त-पादबद्ध-छन्द के चार भागरूप पादों में बँधे हुए, मंदाय-बीच-बीच में मूर्च्छना आदि के प्रयोग द्वारा धीरे-धीरे गाये जाते तथा रोचितावसान-यथोचित लक्षणयुक्त होने से अवसान पर्यन्त समुचित निर्वाहयुक्त-ये चार प्रकार के गेयसंगीतमय रचनाएँ गाते हैं।
कई एक अञ्चित, द्रुत, आरभट तथा भसोल नामक चार प्रकार का नृत्य करते हैं, कई दार्टान्तिक, प्रातिश्रुतिक, सामान्यतोविनिपातिक एवं लोकमध्यावसानिक-चार प्रकार का अभिनय करते हैं। कई बत्तीस प्रकार की नाट्य-विधि उपदर्शित करते हैं। कई उत्पात-निपात-आकाश में ऊँचा उछलना-नीचे गिरनाउत्पातपूर्वक निपातयुक्त, निपातोत्पात-निपातपूर्वक उत्पातयुक्त, संकुचित-प्रसारित-नृत्यक्रिया में पहले अपने आपको संकुचित करना-सिकोड़ना, फिर प्रसृत करना-फैलाना, (रिआरिय-रंगमंच से नृत्य-मुद्रा में पहले निकलना, फिर वहाँ आना) तथा भ्रान्त-संभ्रान्त-जिसमें प्रदर्शित अदभुत चरित्र देखकर परिषद्वर्ती लोगप्रेक्षकवृन्द भ्रमयुक्त हो जाएँ आश्चर्ययुक्त हो जाएँ, वैसी अभिनयशून्य, गात्रविक्षेपमात्र-नाट्यविधि उपदर्शित करते हैं। कई ताण्डव-प्रोद्धत-प्रबल नृत्य करते हैं, कई लास्य-सुकोमल नत्य करते हैं।
कई एक अपने को पीन-स्थूल बनाते हैं, प्रदर्शित करते हैं, कई एक बूत्कार-आस्फालन करते हैं-बैठते हुए पुतों द्वारा भूमि आदि का आहनन करते हैं, कई एक वल्गन करते हैं-पहलवानों की ज्यों परस्पर बाहुओं द्वारा भिड़ जाते हैं, कई सिंहनाद करते हैं, कई पीनत्व, बूत्कार-आस्फालन, वल्गन एवं सिंहनाद क्रमशः तीनों करते हैं, कई घोड़े की ज्यों हिनहिनाते हैं, कई हाथियों की ज्यों गुलगुलाते हैं-मन्द