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चतुर्थ वक्षस्कार ]
[१२४] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में वत्स नामक विजय कहाँ बतलाया गया
है ?
गौतम ! निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शीता महानदी के दक्षिण में, दक्षिणी शीतामुख वन के पश्चिम में, त्रिकूट वक्षस्कार पर्वत के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में वत्स नामक विजय बतलाया गया है। उसका प्रमाण पूर्ववत् है । उसकी सुसीमा नामक राजधानी है ।
त्रिकूट वक्षस्कार पर्वत पर सुवत्स नामक विजय है । उसकी कुण्डला नामक राजधानी है । वहाँ तप्तजला नामक नदी है । महावत्स विजय की अपराजिता नामक राजधानी है । वैश्रवणकूट वक्षस्कार पर्वत पर वत्सावती विजय है। उसकी प्रभंकरा नामक राजधानी है । वहाँ मत्तजला नामक नदी है । रम्य विजय को अंकावती नामक राजधानी है। अंजन वक्षस्कार पर्वत पर रम्यक विजय है । उसकी पद्मावती नामक राजधानी । वहाँ उन्मत्तजला नामक महानदी है। रमणीय विजय की शुभा नामक राजधानी है । मातंजन वक्षस्कार पर्वत पर मंगलावती विजय है । उसकी रत्नसंचया नामक राजधानी है।
शीता महानदी का जैसा उत्तरी पार्श्व है, वैसा ही दक्षिणी पार्श्व है । उत्तरी शीतामुख वन की ज्यों दक्षिणी शीताख वन है ।
वक्षस्कारकूट इस प्रकार हैं
१. त्रिकूट, २. वैश्रवणकूट, ३. अंजनकूट, ४. मातंजनकूट । ( नदियां - १. तप्तजला, २. मत्तजला तथा ३. उन्मत्तजला ।)
विजय इस प्रकार हैं - १. वत्स विजय, २ . सुवत्स विजय, ३. महावत्स विजय, ४. वत्सकावती विजय, ५. रम्य विजय, ६. रम्यक विजय, ७. रमणीय विजय तथा ८. मंगलावती विजय |
राजधानियां इस प्रकार हैं
१. सुसीमा, २. कुण्डला, ३. अपराजिता, ४. अंकावती, ६. पद्मावती, ७. शुभा तथा ८. रत्नसंचया ।
वत्स विजय के दक्षिण में निषध पर्वत है, उत्तर में शीता महानदी है, पूर्व में दक्षिणी शीतामुख वन है तथा पश्चिम में त्रिकूट वक्षस्कार पर्वत है । उसकी सुसीमा राजधानी है, जिसका प्रमाण, वर्णन विनीता के सदृश है।
वत्स विजय के अनन्तर त्रिकूट पर्वत, तदनन्तर सुवत्स विजय, इसी क्रम में तप्तजला नदी, महावत्स विजय, वैश्रवण कूट वक्षस्कार पर्वत, वत्सावती विजय, मत्तजला नदी, रम्य विजय, अंजन वक्षस्कार पर्वत, रम्यक विजय, उन्मत्तजला नदी, रमणीय विजय, मातंजन वक्षस्कार पर्वत तथा मंगलावती विजय हैं। सौमनस वक्षस्कार पर्वत
१२५. कहि णं भंते ! जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे सोमणसे णामं वक्खारपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेणं, मन्दरस्स पव्वयस्स दाहिणपुरत्थिमेणं