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________________ २५० ] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र गौतम! जैसा शीता महानदी के उत्तर-दिग्वर्ती शीतामुख वन का वर्णन है, वैसा ही दक्षिण दिग्वर्ती शीतामुखवन का वर्णन समझ लेना चाहिए। इतना अन्तर है-दक्षिण-दिग्वर्ती शीतामुख वन निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, शीता महानदी के दक्षिण में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, वत्स विजय के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह क्षेत्र में विद्यमान है। वह उत्तर-दक्षिण लम्बा है और सब उत्तर-दिग्वर्ती शीतामुख वन की ज्यों है। इतना अन्तर और है- वह घटते-घटते निषध वर्षधर पर्वत के पास / योजन चौड़ा रह जाता है। वह काले, नीले आदि पत्तों से युक्त होने से वैसी आभा लिये है। उससे बड़ी सुगन्ध फूटती है, देव-देवियां उस पर आश्रय लेते हैं, विश्राम करते हैं। वह दोनों ओर दो पद्मवरवेदिकाओं तथा वनखण्डों से परिवेष्टित है-इत्यादि समस्त वर्णन पूर्वानुरूप है। वत्स आदि विजय १२४. कहि णं भंते ! जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे वच्छे णामं विजए पण्णत्ते ? गोयमा ! णिसहस्स वासहरपव्वयस्स उत्तरेण, सीआए महाणईए दाहिणेणं, दाहिणिल्लस्स सीआमहवणस्स पच्चस्थिमेणं.तिउडस्स वक्खारपवयम्स परस्थिम णं जम्बुद्दीवे दीवे महाविदेहे वासे वच्छे णामं विजए पण्णत्ते, तं चेव पमाणं, सुसीमा रायहाणी १, तिउडे वक्खारपव्वए सुवच्छे विजए, कुण्डला रायहाणी २, तत्तजला णई, महावच्छे विजए अपराजिआ रायहाणी ३, वेसमणकूडे वक्खारपव्वए, वच्छावई विजए, पंभकरा रायहाणी ४, मत्तजला णई, रम्मे विजए, अंकावई रायहाणी ५, अंजणे वक्खारपव्वए रम्मगे विजए पम्हावई रायहाणी ६, उम्मत्तजला महाणई, रमणिज्जे विजए, सुभा रायहाणी ७, मायंजणे वक्खारपव्वए मंगलाई विजए, रयणसंचया रायहाणीति ८। एवं जह चेव सीआए महाणईए उत्तरं पासं तह चेव दक्खिणिल्लं भाणिअव्वं, दाहिणिल्लसीआमुह-वणाइ। इमे वक्खार-कूडा,तं जहा-तिउडे १, वेसमण कूडे २, अंजणे ३,मायंजणे ४,(णईउ तत्तजला १, मत्तजला २, उम्मत्तजला ३,) विजया तं जहा वच्छे सुवच्छे, महावच्छे, चउत्थे वच्छगावई। रम्मे रम्मए चेव रमणिज्जे मंगलावई॥१॥ रायहाणीओ, तं जहा सुसीमा कुण्डला चेव, अवराइय पहंकरा । अंकावई पम्हावई, सुभा रयणसंचया ॥ वच्छस्स विजयस्स णिसहे दाहिणेणं, सीआ उत्तरेणं, दाहिणिल्ल-सीदामुहवणे पुरस्थिमेणं, तिउडे पच्चत्थिमेणं, सुसीमा रायहाणी पमाणं तं चेवेति। वच्छाणंतरं तिउडे तओ सुवच्छे विजए, एएणं कमेणं तत्तजला णई, महावच्छे विजए वेसमणकूडे वक्खारपव्वए, वच्छावई विजए, मत्तजला णई, रम्मे विजए, अंजणे वक्खारपव्वए, रम्मए विजए, उम्मत्तजला णई, रमणिज्जे विजए, मायंजणे वक्खारपव्वए, मंगलावई विजए।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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