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________________ चतुर्थ वक्षस्कार ] में अनादृत नामक देव, जो अपने को वैभव, ऐश्वर्य तथा ऋद्धि में अनुपम, अप्रतिम, मानता हुआ जम्बूद्वीप के अन्य देवों को आदर नहीं देता, के चार हजार सामानिक देवों के ४००० जम्बू वृक्ष बतलाये - गये हैं । पूर्व में चार अग्रमहिषियों- प्रधान देवियों के चार जम्बूवृक्ष कहे गये हैं । [२३३ दक्षिण-पूर्व में - आग्नेय कोण में, दक्षिण में तथा दक्षिण-पश्चिम में - नैर्ऋत्य कोण में क्रमश: आठ हजार, दश हजार और बारह हजार जम्बू हैं। ये पार्षद देवों के जम्बू हैं। पश्चिम में सात अनीकाधियों - सात सेनापति - देवों के सात जम्बू हैं। चारों दिशाओं में सोलह हजार आत्मरक्षक देवों के सोलह हजार जम्बू हैं। जम्बू (सुदर्शन) तीन सौ वनखण्डों द्वारा सब ओर से घिरा हुआ है। उसके पूर्व में पचास योजन पर अवस्थित प्रथम वनखण्ड में जाने पर एक भवन आता है, जो एक कोश लम्बा है। उसका तथा तद्गत शयनीय आदि का वर्णन पूर्वानुरूप है। बाकी की दिशाओं में भी भवन बतलाये गये हैं । जम्बू सुदर्शन के उत्तर-पूर्व- ईशान कोण में प्रथम वनखण्ड में पचास योजन की दूरी पर १. पद्म, २. पद्मप्रभा, ३. कुमुदा एवं ४. कुमुदप्रभा नामक चार पुष्करिणियाँ हैं । वे एक कोस लम्बी, आधा कोश तथा पाँचौ धनुष भूमि में गहरी हैं। उनका विशेष वर्णन अन्यत्र है, वहाँ से ग्राह्य है। उनके बीचबीच में उत्तम प्रासाद हैं। वे एक कोश लम्बे, आधा कोश चौड़े तथा कुछ कम एक कोश ऊँचे हैं। सम्बद्ध सामग्री सहित सिंहासन पर्यन्त उनका वर्णन पूर्वानुरूप है। इसी प्रकार बाकी की विदिशाओं में- आग्नेय, नैर्ऋत्य तथा वायव्य कोण में भी पुष्करिणियाँ हैं। उनके नाम निम्नांकित हैं— १. पद्मा, २. पद्मप्रभा, ३. कुमुदा, ४. कुमुदप्रभा, ५. उत्पलगुल्मा, ६. नलिना, ७. उत्पला, ८. उत्पलोज्ज्वला, ९. भृंगा. १०. भृंगप्रभा, ११. अंजना, १२. कज्जलप्रभा, १३. श्रीकान्ता, १४. श्रीमहिता, १५. श्रीचन्द्रा तथा १६. श्रीनिलया । जम्बू के पूर्व दिग्वर्ती भवन के उत्तर में, उत्तर-पूर्व- ईशानकोणस्थित उत्तम प्रासाद के दक्षिण में एक कूट - पर्वत-शिखर बतलाया गया है। वह आठ योजन ऊँचा एवं दो योजन जमीन में गहरा है । वह मूल में आठ योजन, बीच में छह योजन तथा ऊपर चार योजन लम्बा-चौड़ा है। उस शिखर की परिधि मूल में कुछ अधिक पच्चीस योजन, मध्य में कुछ अधिक अठारह योजन तथा ऊपर कुछ अधिक बारह योजन है। 1 वह मूल में चौड़ा, बीच में संकड़ा और ऊपर पतला है, सर्व स्वर्णमय है, उज्ज्वल है। पद्मवरवेदिका एवं वनखण्ड का वर्णन पूर्वानुरूप है। इसी प्रकार अन्य शिखर हैं। जम्बू सुदर्शना के बारह नाम कहे गये हैं १. सुदर्शना, २. अमोघा, ३. सुप्रबुद्धा, ४. यशोधरा, ५. विदेहजम्बू, ६. सौमनस्या, ७. नियता, ८. नित्यमण्डिता, ९. सुभद्रा, १०. विशाला, ११. सुजाता तथा १२. सुमना ।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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