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________________ २१६ ] । जम्बूद्वापप्रज्ञप्तिसूत्र महाविदेहे णं भंते ! वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोआरे पण्णत्ते ? तेसिणं मणुआणं छव्विहे संघयणे, छव्विहे संठाणे, पञ्चधणुसयाई उद्धं च उच्चत्तेणं, जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं पुव्वकोडीआउअं पालेन्ति, पालेत्ता अप्पेगइआ णिरयगामी, (अप्पेगइआ तिरियगामी,अप्पेगइआ मणुयगामी,अप्पेगइआ देवगामी,)अप्पेगइआ सिझंति, (बुज्झंति, मुच्चंति, परिणिव्वायंति, सव्वदुक्खाणं) अंतं करेन्ति। से केणद्वेणं भंते ! एवं वुच्चइ-महाविदेहे वासे महाविदेहे वासे ? गोयमा ! महाविदेहे णं वासे भरहेरवयहेमवयहेरण्णवयहरिवासरम्मगवासेहिंतो आयामविक्खंभसंठाणपरिणाहेणं वित्थिण्णतराए चेव विपुलतराए चेव महंततराए चेव सुप्पमाणतराए चेव।महाविदेहा य इत्थ मणूसा परिवसंति, महाविदेहे अइत्थ देवे महिड्डीए जाव पलिओवमट्ठिइए परिवसइ। से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चइ-महाविदेहे वासे २। अदुत्तरं च णं गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स सासए णामधेज्जे पण्णत्ते, जं णं कयाइ णासि ३। . [१०२] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह नामक क्षेत्र कहाँ बतलाया गया है ? गौतम ! नीलवान् वर्षधर पर्वत के दक्षिण में, निषध वर्षधर पर्वत के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में, पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत महाविदेह नामक क्षेत्र बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम में लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण में चौड़ा है, पलंग के आकार के समान संस्थित है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। (अपने पूर्वी किनारे से पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है तथा) पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करता है। उसकी चौड़ाई ३३६८४४. योजन है। ___ उसकी बाहा पूर्व-पश्चिम ३३७६७) योजन लम्बी है। उसके बीचोंबीच उसकी जीवा पूर्व-पश्चिम लम्बी है। वह दो ओर से लवणसमुद्र का स्पर्श करती है। अपने पूर्वी किनारे से वह पूर्वी लवणसमुद्र का स्पर्श करती है (तथा पश्चिमी किनारे से पश्चिमी लवणसमुद्र का स्पर्श करती है)। वह एक लाख योजन लम्बी है। उसका धनुपृष्ठ उत्तर-दक्षिण दोनों ओर परिधि की दृष्टि से कुछ अधिक १५८११३१६) योजन महाविदेह क्षेत्र के चार भाग बतलाये गये हैं-१. पूर्वाविदेह, २. पश्चिम विदेह, ३. देवकुरु तथा ४. उत्तरकुरु। भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ? गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल एवं रमणीय है। वह नानाविध कृत्रिम-व्यक्तिविशेषविरचित एवं अकृत्रिम-स्वाभाविक पंचरंगे रत्नों से, तृणों से सुशोभित है। भगवन् ! महाविदेह क्षेत्र में मनुष्यों का आकार, भाव, प्रत्यवतार किस प्रकार का है ?
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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