SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 274
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुर्थ वक्षस्कार] [२११ अनुसार वहाँ कतिपय मनुष्य उदित होते अरुणआभायुक्त सूर्य के सदृश अरुणवर्णयुक्त एवं अरुणआभायुक्त हैं । कतिपय मनुष्य चन्द्र के समान श्वेत-उज्ज्वल वर्णयुक्त, श्वेतआभायुक्त हैं। निषध वर्षधर पर्वत . १००. कहि णं भन्ते ! जम्बूद्दीवे २ णिसहे णामं वासहरपव्वए पण्णत्ते ? गोयमा ! महाविदेहस्स वासस्स दक्खिणेणं, हरिवासस्स उत्तरेणं, पुरत्थिमलवणसमुदस्स पच्चत्थिमेणं, पच्चत्थिमलवणसमुदस्स पुरत्थिमेणं एत्थणंजम्बुद्दीवे दीवेणिसहे णामवासहरपव्वए पण्णत्ते। पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिण्णे। दुहा लवणसमुदं पुढे, पुरथिमिल्लाए (कोडीए पुरथिमिल्ललवणसमुदं) पुढे, पच्चथिमिल्लाए (कोडीए पच्चथिमिल्लं लवणसमुदं) पुढे। चत्तारिजोयणसयाइं उद्धं उच्चत्तेणं, चत्तारि गाउअसयाई उव्वेहेणं, सोलस जोअणसहस्साई अट्ठ य बायाले जोअणस्स दोण्णि य एगूणवीसइभाए जोअणस्स विक्खम्भेणं। तस्स बाहा पुरथिमपच्चत्थिमेणं वीसंजोअणसहस्साइं एगं च पण्णटुं जोअणसयं दुण्णि अएगूणवीसइभाए जोअणस्स अद्धभागंच आयामेणं। तस्स जीवा उत्तरेणं ( पाईणपडीणायया, दुहओ लवणसमुदं पुट्ठा, पुरथिमिल्लाए कोडीए पुरथिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा, पच्चथिमिल्लाए कोडीए पच्चस्थिमिल्लं लवणसमुदं पुट्ठा) चउणवइ जोअणसहस्साई एगंच छप्पण्णंजोअणसयं दुण्णि अएगूणवीसइभागंजोअणस्स आयामेणंति। तस्स धणुंदाहिणेणं एगंजोअणसयसहस्सं चउवीसंच जोअणसहस्साई तिण्णि अछायाले जोअणसए णव य एगूणवीसइभाए जोअणस्स परिक्खेवेणंति।रुअगसंठाणसंठिए, सव्वतवणिज्जमए, अच्छे। उभओ पासिंदोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि अ वणसंडेहिं (सव्वओ समंता) संपरिक्खित्ते। णिसहस्सणं वासहरपव्वयस्स उप्पिं बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे पण्णत्तेजाव आसयंति, सयंति। तस्सणं बहुसमरमणिज्जस्स भूमिभागस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे तिगिंछिद्दहे णामं दहे पण्णत्ते।पाईणपडीणायए, उदीणदाहिणवित्थिण्णे, चत्तारिजोअणसहस्साइंआयामेणं, दो जोअणसहस्साइं विक्खंभेणं, दस जोअणाई उव्वेहेणं, अच्छे सण्हे रययामयकूले। तस्स णं तिगिंछिद्दहस्स चउद्दिसिं चत्तारि तिसोवाणपडिरूवगा पण्णत्ता। एवं जाव आयामविक्खम्भविहूणा जा चेव महापउमद्दहस्स वत्तव्वया सा चेव तिगिंछिद्दहस्सवि वत्तव्वया, तं चेव पउमद्दहप्पमाणं जाव तिगिछिवण्णाई, धिई अइत्थ देवी पलिओवमट्ठिईआ परिवसइ से तेणद्वेणं गोयमा ! एवं वुच्चई तिगिंछिद्दहे तिगिंछिद्देहे। [१००] भगवन् ! जम्बूद्वीप के अन्तर्गत निषध नामक वर्षधर पर्वत कहाँ बतलाया गया है ? - गौतम ! महाविदेहक्षेत्र के दक्षिण में, हरिवर्षक्षेत्र के उत्तर में, पूर्वी लवणसमुद्र के पश्चिम में तथा पश्चिमी लवणसमुद्र के पूर्व में जम्बूद्वीप के अन्तर्गत निषध नामक वर्षधर पर्वत बतलाया गया है। वह पूर्व १. देखें सूत्र संख्या १२
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy