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________________ २०६] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र आयामेणं, सेसं तं चेव पमाणं च अट्ठो अभाणिअव्वो। __ तस्स णं रोहिअप्पवायकुण्डस्स दक्खिणिल्लेणं तोरणेणं रोहिआ महाणई पवूढा समाणी हेमवयं वासं एज्जेमाणी २ सद्दावई वट्टवेअद्धपव्वयं अद्धजोअणेणं असंपत्ता पुरत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हेमवयं वासं दुहा विभयमाणी २ अट्ठावीसाए सलिलासहस्सेहिं समग्गा अहे जगई दालइत्ता पुरत्थिमेणं लवणसमुदं समप्पेइ। रोहिआ णं जहा रोहिअंसा तहा पवाहे अ मुहे अभाणिअव्वा इति जाव संपरिक्खित्ता। तस्स णं महापउमद्दहस्स उत्तरिल्लेणं तोरणेणं हरिकंता महाणई पवूढा समाणी सोलस पंचुत्तरे जोअणसए पंच य एगूवीसइभाए जोअणस्स उत्तराभिमुही पव्वएण गंता महया घडमुहपवत्तिएणं, मुत्तावलिहारसंठिएणं, साइरेगदुजोअणसइएणं पवाएणं पवडइ। हरिकंता महाणई जओ पवडइ, एत्थ णं महं एगा जिब्भिआ पण्णत्ता। दो जोयणाई आयामेणं, पणवीसं जोअणाइं विक्खंभेणं, अद्धं जोअणं बाहल्लेणं मगरमुहविउट्ठसंठाणसंठिआ, सव्वरयणामई, अच्छा। हरिकंता णं महाणई जहिं पवडइ, एत्थ णं महं एगे हरिकंतप्पवायकुंडे णामं कुंडे पण्णत्ते। दोण्णि अ चत्ताले जोअणसए आयामविक्खंभेणं, सत्तअउणढे जोयणसए परिक्खेवेणं, अच्छे एवं कुण्डवत्तव्वया सव्वा नेयव्वा जाव तोरणा। तस्स णं हरिकंतप्पवायकुण्डस्स बहुमज्झदेसभाए एत्थ णं महं एगे हरिकंतदीवेणामंदीवे पण्णत्ते, बत्तीसंजोअणाई आयामविक्खंभेणं, एगुत्तरं जोअणसयं परिक्खेवेणं, दो कोसे ऊसिए जलंताओ, सव्वरयणामए, अच्छे। से णं एगाए पउमवरवेइआए एगेण य वणसंडेणं (सव्वओ समंता)संपरिक्खित्तेवण्णओ भाणिअव्वोत्ति, पमाणंच सयणिज्जंच अट्ठो अभाणिअव्वो।तस्स णंहरिकंतप्पवायकुण्डस्स उत्तरिल्लेणंतोरणेणं(हरिकंता महाणई)पवूढा समाणी हरिवस्संवासं एज्जेमाणी २ विअडावई वट्टवेअद्धं जोअणेणं असंपत्ता पच्चत्थाभिमुही आवत्ता समाणी हरिवासं दुहा विभयमाणी २ छप्पण्णाए सलिलासहस्सेहिंसमग्गाअहे जगइंदलइत्ता पच्चत्थिमेणं लवणसमुई समप्पेई।हरिकंताणंमहाणई पवहे पणवीसंजोअणाई,विक्खम्भेणं,अद्धजोअणं उव्वेहेणं।तयणंतरं चणं मायाए २ परिवद्धमाणी २ मुहमूले अद्धाइज्जाइं जोअणसयाई विक्खंभेणं, पञ्च जोअणाई उव्वेहेणं। उभओ पासिं दोहिं पउमवरवेइआहिं दोहि अवणसंडेहिं संपरिक्खित्ता। [९७] महाहिमवान्पर्वत के बीचोंबीच महापद्मद्रह नाम द्रह बतलाया गया है। वह दो हजार योजन लम्बा तथा एक हजार योजन चौड़ा है। वह दश योजन जमीन में गहरा है। वह स्वच्छ-उज्ज्वल है, रजतमय तटयुक्त है। लम्बाई और चौड़ाई को छोड़कर उसका सारा वर्णन पद्मद्रह के पद्म के सदृश है। उसकी आभा -प्रभा आदि सब वैसा ही है। वहाँ एक पल्योपमस्थितिका-एक पल्योपम आयुष्ययुक्ता ही नामक देवी निवास करती है।
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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