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________________ १९०] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अडयालीसं पउम सयसाहस्सीओ पण्णत्ताओ। एवामेव सपुव्वावरेणं तिहिं पउम-परिक्खेवेहिं एगा पउमकोडी वीसं च पउम-सयसाहस्सीओ भवंतीति अक्खायं। से केणतुणं भंते ! एवं वुच्चइ पउमद्दहे पउमबहे ? गोयमा! पउमद्दहे णंतत्थ तत्थ देसेतहिं बहवे उप्पलाइं,(कुमुयाइं, नलिणाई,सोगन्धियाइं, पुंडरीयाई, सयपत्ताई, सहस्सपत्ताई,) सयसहस्सपत्ताइं, पउमद्दहप्पभाई पउमद्दहवण्णाभाई सिरी अ इत्थ देवी महिड्डिआ जाव' पलिओवमढिईआ परिवसइ, से एएणडेणं ( एवं वुच्चइ पउमद्दहे इति) अदुत्तरं च णं गोयमा ! पउमद्दहस्स सासए णाणधेग्जे पण्णत्ते ण कयाइ णासि न०। [९०] उस अति समतल तथा रमणीय भूमिभाग के ठीक बीच में पद्मद्रह नामक एक विशाल द्रह बतलाया गया है। वह पूर्व-पश्चिम लम्बा तथा उत्तर-दक्षिण चौड़ा है। उसकी लम्बाई एक हजार योजन तथा चौड़ाई पांच सौ योजन है। उसकी गहराई दश योजन है वह स्वच्छ, सुकोमल, रजतमय, तटयुक्त, (चिकना, घुटा हुआ-सा, तराशा हुआ-सा, रजरहित, मैलरहित, कर्दमरहित, कंकड़रहित, प्रभायुक्त, श्रीयुक्तशोभायुक्त, उद्योतयुक्त) सुन्दर, (दर्शनीय, अभिरूप-मन को अपने में रमा लेने वाला एवं) प्रतिरूप-मन में बस जाने वाला है। वह द्रह एक पद्मवरवेदिका द्वारा तथा एक वनखण्ड द्वारा सब ओर से परिवेष्टित है। वेदिका एवं वनखण्ड पूर्व वर्णित के अनुरूप हैं। उस पद्मद्रह की चारों दिशाओं में तीन-तीन सीढियाँ बनी हुई हैं। वे पूर्ण वर्णनानुरूप हैं। उन तीनतीन सीढ़ियों में से प्रत्येक के आगे तोरणद्वार बने हैं। वे नाना प्रकार की मणियों से सुसज्जित हैं। उस पद्मद्रह के बीचों बीच एक विशाल पद्म है। वह एक योजन लम्बा और एक योजन चौड़ा है। आधा योजन मोटा है। दश योजन जल के भीतर गहरा है। दो कोस जल से ऊँचा उठा हुआ है। इस प्रकार उसका कुल विस्तार दश योजन से कुछ अधिक है। वह एक जगती-प्राकार द्वारा सब ओर से घिरा है. उस प्राकार का प्रमाण जम्बूद्वीप के प्राकार के तुल्य है। उसका गवाक्ष समूह-झरोखे भी प्रमाण में जम्बूद्वीप के गवाक्षों के सदृश हैं। उस पद्म का वर्णन इस प्रकार है-उसके मूल वज्ररत्नमय-हीरकमय हैं । उसका कन्द-मूल-नाल की मध्यवर्ती ग्रन्थि रिष्टरत्नमय है। उसका नाल वैडूर्यरत्नमय है। उसके बाह्य पत्र-बाहरी पत्ते वैडूर्यरत्ननीलम घटित हैं। उसके आभ्यन्तर पत्र-भीतरी पत्ते जम्बूनद-कुछ-कुछ लालिमान्वित रंगयुक्त या पीतवर्णयुक्त स्वर्णमय है उसके केसर-किञ्चल्क तपनीय रक्त या लाल स्वर्णमय हैं। उसके पुष्करास्थिभाग-कमलबीज विभाग विविध मणिमय हैं। उसकी कर्णिका-बीजकोश कनकमय स्वर्णमय है। वह कर्णिका आधा योजन लम्बी-चौड़ी है, सर्वथा स्वर्णमय है। स्वच्छ-उज्ज्वल है। १. देखें सूत्र संख्या १४
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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