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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
वेसे जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला तेणेव उवागच्छइ २त्ता आभिसेक्काओ हत्थिरयणाओ पच्चोरुहइ रत्ता अग्गाइं वराइं रयणाइं गहाय जेणेव भरहे राया तेणेव उवागच्छइ २त्ता करयलपरिग्गहिअंजाव अंजलिंकटु भरहं रायंजएणं विजएणं वद्धावेइ रत्ता अग्गाइं वराइं रयणाई उवणेइ।तएणं से भरहे राया सुसेणस्स सेणावइस्स अग्गाइं वराई रयणाई पडिच्छइ २त्ता सुसेणं सेणावई सक्कारेइ सम्माणेइ २त्ता पडिविसज्जेइ। तए णं से सुसेणं सेणावई भरहस्स रण्णो सेसंपि तहेव जाव विहरइ। .
तए णं से भरहे राया अण्णया कयाइ सुसेणे सेणावइरयणं सद्दावेइ २त्ता एवं वयासीगच्छ णं भो देवाणुप्पिआ! खंडप्पवायगुहाए उत्तरिल्लस्स दुवारस्स कवाडे विहाडेहि रत्ता जहा तिमिसगुहाए तहा भाणिअव्वं जाव पिअंभे भवउ, सेसं तहेव जाव भरहो उत्तरिल्लेणं दुवारेणं अईइ, ससिव्व मेहंधयारनिवहं तहेव पविसंतो मंडलाइं आलिहइ। तीसे णं खंडप्पवायगुहाए बहुमज्झदेसभाए( एत्थणं) उम्मग-णिम्मग-जलाओ णामं दुवे महाणईओ तहेवणवरं पच्चंत्थिमिल्लाओ कडगाओ पवूढाओ समाणीओ पुरत्थिमेणं गंगं महाणई समप्पेंति, सेसं तहेव णवरि पच्चथिमिल्लेणंकूलेणं गंगाए संकमवत्तव्वया तहेवत्ति।तए णं खंडगप्पवायगुहाए दाहिणिल्लस्स दुवारस्स कवाडा सयमेव महया कोंचारवं करेमाणा २ सरसरस्सगाई ठाणाई पच्चोसक्कित्था। तएणं से भरहे राया चक्करयणदेसियमग्गे (अणेगराय० महया उक्किट्ठसीहणायबोलकलकलसद्देण समुद्दरवभूयं पिव करेमाणे) खंडप्पवायगुहाओ दक्खिणिल्लेणं दारेणं णीणेइ ससिव्व मेहंधयारनिवहाओ।
[८१] गंगा देवी को साध लेने के उपलक्ष्य में आयोजित अष्टदिवसीय महोत्सव सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। बाहर निकलकर उसने गंगा महानदी के पश्चिमी किनारे दक्षिण दिशा के खण्डप्रपात गुफा की ओर प्रयाण किया।
तब (दिव्य चक्ररत्न को गंगा महानदी के पश्चिमी किनारे दक्षिण दिशा में खण्डप्रपात गुफा की ओर प्रयाण करते देखा, देखकर) राजा भरत जहाँ खण्डप्रपात गुफा थी, वहाँ आया।
यहाँ तमिस्रा गुफा के अधिपति कृतमाल देव से सम्बद्ध समग्र वक्तव्यता ग्राह्य है। केवल इतना सा अन्तर है, खण्डप्रपात गुफा के अधिपति नृत्तमालक देव ने प्रीतिदान के रूप में राजा भरत को आभूषणों से भरा हुआ पात्र, कटक-हाथों के कड़े विशेष रूप में भेंट किये।
नृत्तमालक देव को विजय करने के उपलक्ष्य में आयोजित अष्टदिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर राजा भरत ने सेनापति सुषेण को बुलाया।
यहाँ पर सिन्धु देवी से सम्बद्ध प्रसंग ग्राह्य है। सेनपति सुषेण ने गंगा महानदी के पूर्वभागवर्ती कोण-प्रदेश को, जो पश्चिम में महानदी से, पूर्व में
१. देखें सूत्र संख्या ४४