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तृतीय वक्षस्कार]
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कहा-(देवानुप्रिय ! आपने उत्तर में क्षुद्र हिमवान् पर्वत की सीमा तक भरतक्षेत्र को जीत लिया है। हम आपके देशवासी हैं-आपके प्रजाजन हैं,) हम आपके आज्ञानुवर्ती सेवक हैं । (आप हमारे ये उपहार स्वीकार करें। यह कह कर) विनमि ने स्त्रीरत्न तथा नमि ने रत्न, आभरण भेंट किये। राजा भरत ने (विद्याधरराज नमि तथा विनमि द्वारा समर्पित ये उपहार स्वीकार किये। स्वीकार कर नमि एवं विनमि का सत्कार किया, सम्मान किया। उन्हें सत्कृत, सम्मानित कर) वहाँ से विदा किया।
फिर राजा भरत पौषधशाला से बाहर निकला। बाहर निकाल कर स्नानघर में गया। स्नान आदि सम्पन्न कर भोजन मंडप में गया, तेले का पारणा किया।
विद्याधरराज नमि तथा विनमि को विजय कर लेने के उपलक्ष्य में अष्ट दिवसीय महोत्सव आयोजित किया।
____अष्ट दिवसीय महोत्सव के संपन्न हो जाने के पश्चात् दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। उसने उत्तर-पूर्व दिशा में-ईशान-कोण में गंगा देवी के भवन की ओर प्रयाण किया।
___ यहाँ पर सब वक्तव्यता ग्राह्य है, जो सिन्धु देवी के प्रसंग में वर्णित है। विशेषता केवल यह है कि गंगादेवी ने राजा भरत को भेंट रूप में विविध रत्नों से युक्त एक हजार आठ कलश, स्वर्ण एवं विविध प्रकार की मणियों से चित्रित-विमंडित दो सोने के सिंहासन विशेषरूप से उपहृत किये।
फिर राजा ने अष्टदिवसीय महोत्सव आयोजित करवाया। खण्डप्रपातविजय
८१. तएणं से दिव्वे चक्करयणे गंगाए देवीए अट्ठाहियाए महामहिमाए निव्वत्ताए समाणीए आउहघरसालाओ पडिणिक्खमइ २त्ता जाव ' गंगाए महाणईए पच्चथिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसिं खंडप्पवायगुहाभिमुहे पयाए यावि होत्था।
तते णं से भरहे राया (तं दिव्वं चक्करयणं गंगाए पच्चस्थिमिल्लेणं कूलेणं दाहिणदिसिं खंडप्पवायगुहाभिमुहं पयातं पासइ २त्ता) जेणेव खंडप्पवायगुहा तेणेव उवागच्छइ रत्ता सव्वा कयमालवत्तव्वया णेअव्वा णवरि णट्टमालगे देवे पीतिदाणं से आलंकारिअभंडं कडगाणि अ सेसं सव्वं तहेव जाव अट्ठाहिआ महामहिमा०।
तए णं से भरहे राया णट्टमालस्स देवस्स अट्ठाहिआए म० णिव्वत्ताए समाणीए सुसेणं सेणावई सद्दावेइ २त्ता जाव सिंधुगमो णेअव्वो, जाव गंगाए महाणईए पुरथिमिल्लं णिक्खुडं सगंगासागरगिरिमेरागं समविसमणिक्खुडाणि अ आओवेइ २त्ता अग्गाणि वराणि रयणाणि पडिच्छइ रत्ता जेणेव गंगामहाणई तेणेव उवागच्छइ रत्तादोच्चंपिसक्खंधावारबले गंगामहाणई विमलजलतुंगवीइंणावाभूएणंचम्मरयणेणं उत्तरइ रत्ताजेणेव भरहस्सरण्णो विजयखंधावारणि
१. देखें सूत्र संख्या ५०