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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
* भरतक्षेत्र का प्रथम राजा-प्रधान राजा हूँ, भरतक्षेत्र का अधिपति हूँ, नरवरेन्द्र हूँ। मेरा कोई प्रतिशत्रु -प्रतिपक्षा नहीं है। मैंने भरतक्षेत्र को जीत लिया है ॥ २॥
इस प्रकार राजा भरत ने अपना नाम एवं परिचय लिखा। वैसा कर अपने रथ को वापस मोड़ा। वापस मोड़कर, जहाँ अपना सैन्य-शिविर था, जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। (वहाँ आकर घोड़ों को नियन्त्रित किया, रथ को ठहराया, रथ से नीचे उतरा। नीचे उतर कर, जहाँ स्नानघर था ,वहाँ आया, स्नानघर में प्रविष्ट हुआ। स्नानादि सम्पन्न कर, चन्द्र की ज्यों प्रियदर्शन-प्रीतिप्रद दिखाई देने वाला राजा भरत स्नानाघर से बाहर निकला। बाहर निकल कर वह भोजन मंडप में आया, सुखासन से बैठा अथवा शुभ-उत्तम आसन पर बैठा, तेले का पारणा किया। पारणा कर, जहाँ बाह्य उपस्थानशाला थी, सिंहासन था, वहाँ आया। पूर्व की ओर मुंह कर सिंहासन पर बैठा। अपने अठारह श्रेणि-प्रश्रेणि जनों को बुलाया, उनसे कहा-देवानुप्रियो ! मेरी ओर से यह घोषणा करो कि क्षुद्र हिमवान्-गिरिकुमार देव को विजय करने के उपलक्ष्य में अष्टदिवसीय महोत्सव आयोजित किया जाए। इन आठ दिनों में कोई भी क्रय-विक्रय आदि से सम्बद्ध शुल्क, सम्पत्ति आदि पर लिया जाने वाला राज्य-कर आदि न लिये जाएँ। मेरे आदेशानुरूप यह कार्य परिसम्पन्न कर मुझे अवगत कराओ।
राजा भरत द्वारा यों कहे जाने पर वे अठारह श्रेणि-प्रश्रेणी जन अपने मन में हर्षित हुए। उन्होंने राजा के आदेशानुरूप सब व्यवस्थाएँ की, महोत्सव आयोजित करवाया। वैसा कर उन्होंने राजा को सूचित किया।)
क्षुद्र हिमवान्-गिरिकुमार देव को विजय करने के उपलक्ष्य में समायोजित अष्ट दिवसीय महोत्सव के सम्पन्न हो जाने पर वह दिव्य चक्ररत्न शस्त्रागार से बाहर निकला। बाहर निकलकर उसने दक्षिण दिशा में वैताढ्य पर्वत की ओर प्रयाण किया। नमि-विनमि-विजय
८०. तए णं से भरहे राया तं दिव्वं चक्करयणं जाव' वेअद्धस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे तेणेव उवागच्छइ २त्ता वेअद्धस्स पव्वयस्स उत्तरिल्ले णितंबे दुवालसजोयणायाणंजाव' पोसहसालं अणुपविसइ जाव ३ णमिविणमीणं विजाहरराईणं अट्ठमभत्तं पगिण्हइ २ त्ता पोसहसालाए ( अट्ठमभत्तिए) णमिविणमिविजाहररायाणो मणसिं करेमाणे २ चिट्ठइ। तए णं तस्स भरहस्स रणो अट्ठमभत्तंसि परिणममाणंसि णमिविणमिविजाहररायणो दिव्वाए मईए चोइअमई अण्णमण्णस्स अंतिअंपाउब्भवंति २त्ता एवं वयासी-उप्पण्णे खलु भो देवाणुप्पिया! जंबूद्दीवे दीवे भरहे वासे भरहे राया चाउरंतचक्कवट्टीतं जीअमेअंतीअपच्चुप्पण्णमणागयाणं विजाहरराईणं चक्कवट्टीणं उवत्थाणिकरेत्तए, तं गच्छामोणं देवाणुप्पिआ ! अम्हेवि भरहस्स
१. देखें सूत्र ५० २. देखें सूत्र ६२ ३. देखें सूत्र ५१