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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
खित्ते महयाउक्किट्ठसीहणायबोलकलकलसद्देणं समुद्दरवभूयंपिव करेमाणे रसव्विड्डीए सव्वज्जुईए सव्वबलेणं ( सव्वसमुदयेणं सव्वायरेणं सव्वविभूसाए सव्वविभूईए सव्ववत्थपुप्फगंधमल्लालंकारविभूसाए सव्वतुडिअसद्दसण्णिणाएणं सव्विड्डीए सव्ववर-तुडिअ-जमगसमगपवाइएणं संखपणवपडहभेरिझल्लरिखरमुहिमुरयमुइंगदुंदुहि-)णिग्घोसणाइएणं जेणेव सिंधू महाणाई तेणेव उवागच्छइ २त्ता चम्मरयणं परामुसइ।तएणं तंसिरिवच्छसरिसरूवं मुत्ततारद्धचंदचित्तं अयलमकंपं अभेज्जकवयं जंतं सलिलासु सागरेसु अ उत्तरणं दिव्वं चम्मरयणं सणसत्तरसाइं सव्वधण्णाई जत्थ रोहंति एगदिवसेण वाविआई, वासंणाऊण चक्कवट्टिणा परामुढे दिव्वे चम्मरयणे दुवालस जोअणाइं तिरिअंपवित्थरइ तत्थ साहिआई, तए णं से दिव्वे चम्मरयणे सुसेणसेणावइणा परामुढे समाणे खिप्पामेवणावाभूए जाए होत्था।तए णं से सुसेणे सेणावई सखंधावारबलवाहणे णावाभूयं चम्मरयणं दुरूहइ २त्ता सिंधुमहाणई विमलजलतुंगवीचिंणावाभूएणं चम्मरयणेणं सबलवाहणे सुसेणे समुत्तिण्णे।
[६७] कोरंट पुष्प की मालाओं से युक्त छत्र उस पर लगा था, घोड़े हाथी, उत्तम योद्धाओं-पदातियों से युक्त सेना से वह संपरिवृत था। विपुल योद्धाओं के समूह से वह समवेत था। उस द्वारा किय गये गम्भीर, उत्कृष्ट सिंहनाद की कलकल ध्वनि से ऐसा प्रतीत होता था, मानो समुद्र गर्जन कर रहा हो। सब प्रकार की ऋद्धि, सब प्रकार की द्युति-आभा, सब प्रकार के बल-सैन्य, शक्ति से युक्त (सर्वसमुदाय-सभी परिजन सहित, समादरपूर्ण प्रयत्नरत्न, सर्वविभूषा-सब प्रकार की वेशभूषा, वस्त्र, आभरण आदि द्वारा सज्जित, सर्वविभूति-सब प्रकार के वैभव, सब प्रकार के वस्त्र, पुष्प, सुगन्धित पदार्थ, फूलों की मालाएँ अलंकार अथवा फूलों की मालाओं से निर्मित आभरण-इनसे वह सुसज्जित था। सब प्रकार के वाद्यों की ध्वनिप्रतिध्वनि, शंख, पणव-पात्र विशेष पर मढे हुए ढोल, पटह-बड़े ढोल, भेरी, झालर, खरमुही, मुरजढोलक, मृदंग तथा नगाड़े इनके समवेत घोष के साथ) वह जहाँ सिन्धु महानदी थी, वहाँ आया।
वहाँ आकर चर्म-रत्न का स्पर्श किया। वह चर्म-रत्न श्रीवत्स-स्वस्तिक-विशेष जैसा रूप लिये था। उस पर मोतियों के, तारों के तथा अर्धचन्द्र के चित्र बने थे। वह अचल एवं अकम्प था। वह अभेद्य कवच जैसा था। नदियों एवं समुद्रों को पार करने का यन्त्र-अनन्य साधन था। दैवी विशेषता लिये था। चर्म-निर्मित वस्तुओं में वह सर्वोत्कृष्ट था। उस पर बोये हुए सत्तरह प्रकार के धान्य एक दिन में उत्पन्न हो सकें, वह ऐसी विशेषता लिये था। ऐसी मान्यता है कि गृहपतिरत्न इस चर्म-रत्न पर सूर्योदय के समय धान्य बोता है, जो उग कर दिन भर में पक जाते हैं, गृहपति सायंकाल उन्हें काट लेता है। चक्रवर्ती भरत द्वारा परामृष्ट वह चर्मरत्न कुछ अधिक बारह योजन विस्तृत था।
सेनापति सुषेण द्वारा छुए जाने पर चर्मरत्न शीघ्र ही नौका के रूप में परिणत हो गया। सेनापति सुषेण सैन्य-शिविर-छावनी में विद्यमान सेना एवं हाथी, घोड़े, रथ आदि वाहनों सहित उस चर्म-रत्न पर सवार हुआ। सवार होकर निर्मल जल की ऊँची उठती तरंगों से परिपूर्ण सिन्धु महानदी को दलबलसहित, सेनासहित पार किया।