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[जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र
उस काल में तीन वंश उत्पन्न होंगे-१. तीर्थंकर-वंश, २. चक्रवर्ती-वंश तथा ३. दशार-वंशबलदेव-वासुदेव-वंश। उस काल में तेवीस तीर्थंकर, ग्यारह चक्रवर्ती तथा नौ वासुदेव उत्पन्न होंगे।
आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस आरक का बयालीस हजार वर्ष कम एक सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी-काल का सुषम-दुःषमा नामक आरक प्रारम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि अनन्तगुण परिवृद्धि क्रम से परिवर्द्धित होंगे।
वह काल तीन भागों में विभक्त होगा-प्रथम तृतीय भाग, मध्यम तृतीय भाग तथा अन्तिम तृतीय भाग। भगवन् ! उस काल के प्रथम विभाग में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ?
गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा। अवसर्पिणी-काल के सुषम-दुःषमा आरक के अन्तिम तृतीयाशं में जैसे मनुष्य बताये गये हैं, वैसे ही इसमें होंगे। केवल इतना अन्तर होगा, इसमें कुलकर नहीं होंगे, भगवान् ऋषभ नहीं होंगे।
इस सन्दर्भ में अन्य आचार्यों का कथन इस प्रकार हैउस काल के प्रथम विभाग में पन्द्रह कुलकर होंगे
१. सुमति, २. प्रतिश्रुति, ३. सीमंकर, ४. सीमंधर, ५. क्षेमंकर, ६. क्षेमंधर, ७. विमलवाहन, ८. चक्षुष्मान्, ९. यशस्वान्, १०. अभिचन्द्र, ११. चन्द्राभ, १२. प्रसेनजित्, १३. मरुदेव, १४. नाभि, १५. ऋषभ।
शेष उसी प्रकार है। दण्डनीतियाँ प्रतिलोम-विपरीत क्रम से होंगी, ऐसा समझना चाहिए।
उस काल के प्रथम विभाग में राज-धर्म (गण-धर्म, पाखण्ड-धर्म, अग्नि-धर्म तथा) चारित्र-धर्म विच्छिन्न हो जायेगा।
इस काल के मध्यम तथा अन्तिम विभाग की वक्तव्यता अवसर्पिणी के प्रथम-मध्यम विभाग को ज्यों समझनी चाहिए। सुषमा और सुषम-सुषमा काल भी उसी जैसे हैं। छह प्रकार के मनुष्यों आदि का वर्णन उसी के सदृश है।