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द्वितीय वक्षस्कार]
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तिभागे वत्तव्वया सा भाणिअव्वा, कुलगरवज्जा उसभसामिवज्जा।
अण्णे पढंति तंजहा-तीसे णं समाए पढमे तिभाए इसे पण्णरस कुलगरा समुप्पग्जिस्संति तंजहा-सुमई, पडिस्सुई, सीमंकरे, सीमंधरे, खेमंकरे, खेमंधरे, विमलवाहणे, चक्खुमं, जसमं, अभिचंदे, चंदाभे, पसेणई, मरुदेवे, णाभी, उसभे, सेसंतं चेव दंडणीईओ पडिलोमाओ णेअव्वाओ। . * तीसे णं समाए पढमे तिभाए रायधम्मे ( गणधभ्भे पाखंडधम्मे अग्गिधम्मे ) धम्मचरणे अवोच्छिज्जिस्सइ।
तीसे णं समाए मज्झिमपच्छिमेसु तिभागेसु पढममज्झिमेसु वत्तव्वया ओसप्पिणीए सा भाणिअव्वा, सुसमा तहेव, सुसमसुसमावि तहेव जाव छव्विहा मणुस्सा अणुसज्जिस्संति जाव सण्णिचारी।
[५०] उस काल में- उत्सर्पिणी काल के दुःषमा नामक द्वितीय आरक में भरतक्षेत्र का आकारस्वरूप कैसा होगा? .
गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होगा। (मुरज के तथा मृदंग के ऊपरी भागचर्मपुट जैसा समतल होगा, अनेक प्रकार की, पंचरंगी कृत्रिम एवं अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होगा)।
उस समय मनुष्यों का आकार-प्रकार कैसा होगा ?
गौतम ! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन एवं संस्थान होंगे। उनकी ऊँचाई अनेक हाथ-सात हाथ की होगी। उनका जघन्य अन्तर्मुहूर्त का तथा उत्कृष्ट कुछ अधिक-(तेतीस वर्ष अधिक) सौ वर्ष का आयुष्य होगा। आयुष्य को भोगकर उन में से कई नरकगति में, (कई तिर्यंच गति में, कई मनुष्य गति में), कई देव-गति में जायेंगे, किन्तु सिद्ध नहीं होंगे।
आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस आरक के इक्कीस हजार वर्ष व्यतीत हो जाने पर उत्सर्पिणी-काल का दुःषम-सुषमा नामक तृतीय आरक आरम्भ होगा। उसमें अनन्त वर्ण-पर्याय आदि क्रमशः परिवर्द्धित होते जायेंगे।
भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र का आकार-स्वरूप कैसा होगा ?
गौतम ! उसका भूमिभाग बड़ा समतल एवं रमणीय होगा। (वह मुरज के अथवा मृदंग के ऊपरी भाग-चर्मपुट जैसा समतल होगा। वह नानाविध कृत्रिम, अकृत्रिम पंचरंगी मणियों से उपशोभित होगा।
भगवन् ! उन मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होगा ?
गौतम! उन मनुष्यों के छह प्रकार के संहनन तथा संस्थान होंगे। उनके शरीर की ऊँचाई अनेक धनुष-परिमाण होगी। जघन्य अन्तर्मुहूर्त तथा उत्कृष्ट एक पूर्व कोटि तक का उनका आयुष्य होगा। आयुष्य का भोग कर उनमें से कई नरक गति में ( कई तिर्यञ्च-गति में, कई मनुष्य-गति में, कई देव-गति में जायेंगे कई सिद्ध, बुद्ध, मुक्त एवं परिनिर्वृत्त होंगे,) समस्त दुःखों का अन्त करेंगे।