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________________ ८६] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अमयमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, खिप्पामेव पतणतणाइत्ता-खिप्पामेव पविजुआइस्सइ, खिप्पामेव पविजुआइत्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहिं ओघमेघ सत्तरत्तं) वासंवासिस्सइ जेणं भरहे वासे रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वगहरित-ओसहि-पवालंकुर-माईए तणवस्सइकाइए जणइस्सइ। तंसि च णं अमयमेहंसि सत्तरत्तं णिवतितंसि समाणंसि एत्थणं रसमेहे णामं महामहे पाउब्भविस्सइ, भरहप्पमाणमेत्ते आयामेणं,(तदणुरूवंच विक्खंभवाहल्लेणं।तए णं से रसमेहे णामं महामेहे खिप्पामेव पतणतणाइस्सइ, खिप्पामेव पतणतणाइत्ता खिप्पामेव पविज्जुआइस्सइ, खिप्पामेव पविजुआइत्ता खिप्पामेव जुगमुसलमुट्ठिप्पमाणमित्ताहिं धाराहिं ओघमेघं सत्तरत्तं) वासं वासिस्सइ, जेणं तेसिं बहूणं रुक्ख-गुच्छ-गुम्म-लय-वल्लि-तण-पव्वग-हरित-ओसहिपवालंकुर-मादीणं-तित्तं-कडूअ-कसाय-अंबिल-महुरे-पंचविहे रसविसेसे जणइस्सइ। तए णं भरहे वासे भविस्सइ परूढरुक्खगुच्छगुम्मलयवल्लितणपव्वगहरिअओसहिए, उवचियतय-पत्त-पवालंकुर-पुप्फ-फलसमुइए, सुहोवभोगे आवि भविस्सइ। [४८] उस उत्सर्पिणी-काल के दुःषमा नामक द्वितीय आरक के प्रथम समय में भरतक्षेत्र की अशुभ अनुभावमय रूक्षता, दाहकता आदि का अपने प्रशान्त जल द्वारा शमन करने वाला पुष्कर-संवर्तक नामक महामेघ प्रकट होगा। वह महामेघ लम्बाई, चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र प्रमाण-भरतक्षेत्र जितना होगा। वह पुष्कर-संवर्तक महामेघ शीघ्र ही गर्जन करेगा, गर्जन कर शीघ्र ही विद्युत् से युक्त होगा-उसमें बिजलियाँ चमकने लगेंगी, विद्युत्-युक्त होकर शीघ्र ही वह युग-रथ के अवयवविशेष (जूंवा), मूसल और मुष्टिपरिमित-मोटी धाराओं से सात दिन-रात तक सर्वत्र एक जैसी वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरतक्षेत्र के अंगारमय, मुर्मुरमय, क्षारमय, तप्त-कटाह सदृश, सब ओर से परितप्त तथा दहकते भूमिभाग को शीतल करेगा। यो सात दिन-रात तक पुष्कर-संवर्तक महामेघ के बरस जाने पर क्षीरमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई, चौड़ाई तथा विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। वह क्षीरमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, (गर्जन कर शीघ्र ही विद्युतयुक्त होगा, विद्युतयुक्त होकर) शीघ्र ही युग, मूसल और मुष्टि (परिमित धाराओं से सर्वत्र एक सदृश) सात दिन-रात तक वर्षा करेगा। यों वह भरतक्षेत्र की भूमि में शुभ वर्ण, शुभ गंध, शुभ रस तथा शूभ स्पर्श उत्पन्न करेगा, जो पूर्वकाल में अशुभ हो चुके थे। ___ उस क्षीरमेघ के सात दिन-रात बरस जाने पर घृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई, चौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। वह घृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, वर्षा करेगा। इस प्रकार वह भरतक्षेत्र की भूमि में स्नेहभाव-स्निग्धता उत्पन्न करेगा। उस घृतमेघ के सात दिन-रात तक बरस जाने पर अमृतमेघ नामक महामेघ प्रकट होगा। वह लम्बाई, (चौड़ाई और विस्तार में भरतक्षेत्र जितना होगा। वह अमृतमेघ नामक विशाल बादल शीघ्र ही गर्जन करेगा, गर्जन कर शीघ्र ही विद्युतयुक्त होगा, युग, मूसल तथा मुष्टि-परिमित धाराओं से सर्वत्र एक जैसी सात दिन
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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