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________________ ८२] [जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र अनन्तर अरसमेघ-मनोज्ञ रस-वर्जित जलयुक्त मेघ, विरसमेघ-विपरीत रसमय जलयुक्त मेघ, क्षारमेघखार के समान जलयुक्त मेघ, खात्रमेघ-करीष सदृश रसमय जलयुक्त मेघ, अथवा अम्ल या खट्टे जलयुक्त मेघ. अग्निमेघ-अनि सदश दाहक जलयक्त मेघ. विद्यन्मेघ-विद्यत-बहल जलवर्जित मेघ अथवा बिजली गिराने वाले मेघ, विषमेघ-विषमय जलवर्षक मेघ, अयापनीयोदक-अप्रयोजनीय जलयुक्त, व्याधि-कुष्ट आदि लम्बी बीमारी, रोग-शूल आदि सद्योघाती-फौरन प्राण ले लेने वाली बीमारी जैसे वेदनोत्पादक जलयुक्त, अप्रिय जलयुक्त मेघ, तूफानजनित तीव्र प्रचुर जलधारा छोड़ने वाले मेघ निरंतर वर्षा करेंगे। भरतक्षेत्र में ग्राम, आकर, नगर, खेट कर्वट, मडम्ब, द्रोणमुख, पट्टन, आश्रमगत जनपद-मनुष्यवृन्द, गाय आदि चौपाये प्राणी, खेचर-वैताढ्य पर्वत पर निवास करने वाले गगनचारी विद्याधर, पक्षियों के समूह, गाँवों और वनों में स्थित द्वीन्द्रिय आदि त्रस जीव, बहुत प्रकार के आम्र आदि वृक्ष, वृन्ताकी आदि गुच्छ, नवमालिका आदि गुल्म, अशोकलता आदि लताएँ, वालुक्य प्रभृति बेलें, पत्ते, अंकुर इत्यादि बादर वानस्पतिक जीव-तृण आदि वनस्पतियाँ, औषधियाँ-इन सबका वे विध्वंस कर देंगे। वैताढ्य आदि शाश्वत पर्वतों के अतिरिक्त अन्य पर्वत-उज्जयन्त, वैभार आदि क्रीडापर्वत, गोपाल, चित्रकूट आदि गिरि, डूंगर-पथरीले टीले, उन्नत स्थल-ऊँचे स्थल, बालू के टोबे, भ्राष्ट्र-धूलवर्जित-भूमि-पठार, इन सब को तहस-नहस कर डालेंगे। गंगा और सिंधू महानदी के अतिरिक्त जल के स्रोतों, झरनों, विषमगर्त-उबड़-खाबड़ खड्डों, निम्नउन्नत-नीचे ऊँचे जलीय स्थानों को समान कर देंगे-उनका नाम-निशान मिटा देंगे। भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र की भूमि का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम! भूमि अंगारभूत-ज्वालाहीन वह्निपिण्डरूप, मुर्मरभूत-तुषाग्निसदृश विरलअग्निकणमय, क्षारिकभूत-भस्म रूप, तप्तकवेल्लुकभूत-तपे हुए कटाह सदृश, सर्वत्र एक जैसी तप्त, ज्वालामय होगी। उसमें धूलि, रेणु-बालुका, पंक-कीचड़, प्रतनु-पतले कीचड़, चलते समय जिसमें पैर डूब जाए, ऐसे प्रचुर कीचड़ की बहुलता होगी। पृथ्वी पर चलने-फिरने वाले प्राणियों का उस पर चलना बड़ा कठिन होगा। भगवन् ! उस काल में भरतक्षेत्र में मनुष्यों का आकार-स्वरूप कैसा होगा ? गौतम! उस समय मनुष्यों का रूप, वर्ण-रंग, गंध, रस तथा स्पर्श अनिष्ट-अच्छा नहीं लगने वाला, अकान्त-कमनीयता रहित, अप्रिय, अशुभ, अमनोज्ञ-मन को नहीं भाने वाला तथा अमनोऽम-अमनोगम्य मन को नहीं रुचने वाला होगा। उनका स्वर हीन, दीन, अनिष्ट, अकान्त, अप्रिय, अमनोगम्य और अमनोज्ञ होगा। उनका वचन, जन्म अनादेय-अशोभन होगा। वे निर्लज्ज-लज्जा रहित, कूट-भ्रांतिजनक द्रव्य, कपट-छल, दूसरों को ठगने हेतु वेषान्तरकरण आदि, कलह-झगड़ा, बन्ध-रज्जु आदि द्वारा बन्धन तथा वैर-शत्रुभाव में निरत होंगे। मर्यादाएँ लांघने, तोड़ने में प्रधान, अकार्य करने में सदा उद्यत एवं गुरुजन के आज्ञा-पालन और विनय से रहित होंगे। वे विकलरूप-असंपूर्ण देहांगयुक्त-काने, लंगड़े, चतुरंगुलिक आदि आजन्म संस्कारशून्यता के कारण बढ़े हुए नख, केश तथा दाढ़ी-मूंछ युक्त, काले, कठोर स्पर्शयुक्त, गहरी रेखाओं य सलवटों के कारण फूटे हुए से मस्तक युक्त, धू) के से वर्ण वाले तथा सफेद केशों से युक्त,
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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