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________________ द्वितीय वक्षस्कार] [७३ उदास, निरानन्द-आनन्द-रहित, आँखों में आँसू भरे तीर्थंकर के शरीर की तीन बार आदक्षिण-प्रदक्षिणा की। वैसा कर न अधिक निकट, न अधिक दूर संस्थित हो पर्युपासना की। उसी प्रकार) सभी देवेन्द्र(सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, लांतक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण, अच्युत देव लोकों के अधिपतिइन्द्र) अपने-अपने परिवार के साथ वहाँ आये। उसी प्रकार भवनवासियों के बीस इन्द्र, वाणव्यन्तरों के सोलह इन्द्र, ज्योतिष्कों के दो इन्द्र, सूर्य तथा चन्द्रमा अपने-अपने देव-परिवारों के साथ वहाँ-अष्टापद पर्वत पर आये। ४३. तए णं सक्के देविंदे, देवराया बहवे भवणवइवाणमंतरजोइसवेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! णंदणवणाओ सरसाइंगोसीसवरचंदणकट्ठाइं साहरह, साहरेत्ता तओ चिइगाओ रएह- एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणधराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं।तए णं ते भवणवइ (वाणमंतर-जोइसिअ) वेमाणिआ देवाणंदणवणाओ सरसाइं गोसीसवरचंदणकट्ठाइं साहरंति, साहरेत्ता तओ चिइगाओ रएंति, एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं। तए णं से सक्के देविंदे, देवराया आभिओगे देव सद्दावेइ, सद्दावेत्ता, एवं वयासीखिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! खीरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरह। तए णं ते आभिओगा देवा खीरोदगसमुद्दाओ खीरोदगं साहरंति। तए णं सक्के देविंदे, देवराया, तित्थगरसरीरगं खीरोदगेणं ण्हाणेति, पहाणेत्ता सरसेणं गोसीसवरचंदणेणं अणुलिंपड़,अणुलिंपेत्ता हंसलक्खणं पडसाडयंणिअंसेइ,णिअंसेत्ता सव्वालंकारविभूसिअंकरेति। तए णं ते भवणवइ जाव वेमाणिआ गणहरसरीरगाइं अणगारसरीरगाइपि खीरोदगेणं ण्हावंति, ण्हावेत्ता सरसेणं/गोसीसवरचंदणेणं अणुलिंपंति, अणुलिंपेत्ता अहयाइं दिव्वाइं देवदूसजुअलाइंणिअंसंति, णिअंसेत्ता सव्वालंकारविभूसिआइं करेंति।तए णं से सक्के देविंदे, देवराया ते बहवे भवणवइ जाव वेमाणिए देवे एवं वयासी-खिप्यामेव भो देवणुप्पिआ ! ईहामिगउसभतुरग(-णरमगरविहगवालगकिन्नररुरुसरभचमरकुंजर-)वणलयभत्तिचित्तओतओ सिवियाओ विउव्वह, एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एग अवसेसाणं अणगाराणं, तएणंते बहवे भवणवइ जाव वेमाणिआतओ सिविआओ विउव्वंति, एगं भगवओ तित्थगरस्स, एगं गणहराणं, एगं अवसेसाणं अणगाराणं। तएणं सेसक्के देविंदे, देवराया विमणे,णिराणंदे,अंसुपुण्णणयणे भगवओ तित्थगरस्स विणट्ठजम्मजरामरणस्स सरीरगंसीअंआरुहेति आरुहेता चिइगाइ ठवेइ।तए णं ते बहवे भवणवइ १. देखें सूत्र यही २. देखें सूत्र यही ३. देखें सूत्र यही
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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