________________
द्वितीय वक्षस्कार ]
गोयमा ! बहुसमरमणिज्जे भूमिभागे होत्था, से जहाणामए आलिंगपुक्खरेइ वा जाव ' मणीहिं उवसोभिए, तंजहा - कित्तमेहिं चेव अकित्तिमेहिं चेव ।
[44
तीसे णं भंते! समाए पच्छिमे तिभागे भरहे वासे मणुआणं केरिसए आयारभावपडोयारे था ?
गोयमा ! तेसिं मणुआणं छब्बिहे संघयणे, छब्बिहे संठाणे, बहूणि धणुसयाणि उड्ड उच्चत्तेणं, जहण्णेणं संखिज्जाणि वासाणि, उक्कोसेणं असंखिज्जाणि वासाणि आउअं पालंति, पालित्ता अप्पेगइया णिरयगामी, अप्पेगइया तिरिअगामी अप्पेगइया मणुस्सगामी अप्पेगइया देवगामी, अप्पेगइया सिज्झंति, (बुज्झंति, मुच्छंति, परिणिव्वायंति, ) सव्वदुक्खाणमंतं करेंति ।
[३४] आयुष्मन् श्रमण गौतम ! उस समय का - उस आरकका - द्वितीय आरक का तीन सागरोपम कोडाकोडी काल व्यतीत हो जाता है, तब अवसर्पिणी-काल का सुषम - दुःषमा नामक तृतीय आरक प्रारम्भ होता है । उसमें अनन्त वर्ण- पर्याय, ( अनन्त गंध- पर्याय, अनन्त रस - पर्याय, अनन्त स्पर्श - पर्याय, अनन्त संहनन-पर्याय, अनन्त संस्थान - पर्याय, अनन्त - उच्चत्व पर्याय, अनन्त आयु - पर्याय, अनन्त गुरु-लघु - पर्याय, अनन्त अगुरु-लघु-पर्याय, अनन्त उत्थान - कर्म-बल-वीर्य - पुरुषाकार - पराक्रम - पर्याय ) – इनका अनन्तगुण परिहानि-क्रम से ह्रास हो जाता है।
उस आरक को तीन भागों में विभक्त किया गया है - १. प्रथम त्रिभाग, २. मध्यम त्रिभाग, ३. पश्चिम त्रिभाग - अंतिम त्रिभाग ।
भगवन् ! जम्बूद्वीप में इस अवसर्पिणी के सुषम - दुषमा आरक के प्रथम तथा मध्यम त्रिभाग का आकार - स्वरूप कैसा है ?
आयुष्मन् श्रमण गौतम! उस का भूमिभाग बहुत समतल और रमणीय होता है। उसका पूर्ववत् वर्णन जानना चाहिए। अन्तर इतना है— उस समय के मनुष्यों के शरीर की ऊँचाई दो हजार धनुष होती है। उनकी पसलियों की हड्डियाँ चौसठ होती हैं। एक दिन के बाद उन में आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। उनका एक पल्योपम का होता है, ७९ रात-दिन अपने यौगलिक शिशुओं की वे सार - सम्हाल - पालन-पोषण करते हैं। (वे खाँसकर, छींककर, जम्हाई लेकर शारीरिक कष्ट, व्यथा तथा परिताप अनुभव नहीं करते हुए कालधर्म को प्राप्त होकर - मर कर स्वर्ग में उत्पन्न होते हैं) । उन मनुष्यों का जन्म स्वर्ग में ही होता है ।
भगवन् ! उस आरक के पश्चिम त्रिभाग में - आखिरी तीसरे हिस्से में भरत क्षेत्र का आकार - स्वरूप कैसा होता है ?
गौतम ! उसका भूमिभाग बहुत समतल तथा रमणीय होता है। वह मुरज के ऊपरी भाग जैसा समतल होता है । वह यावत् कृत्रिम एवं अकृत्रिम मणियों से उपशोभित होता है ।
१. देखें
सूत्र संख्या ६