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________________ [ जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिसूत्र वा, मल्ल - पेच्छाइ वा, मुट्ठिअ - पेच्छाइ वा, वेलंबग-पेच्छाइ वा, कहग-पेच्छाइ वा, पवग-पेच्छाइ वा, लासग-पेच्छाइ वा, ? it इट्ठे समट्ठे, ववगय- कोउहल्ला णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! ४८ ] (१२) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में नट-नाटक दिखाने वालों, नर्तक - नाचने वालों, जल्ल-कालबाजों—रस्सी आदि पर चढ़कर कला दिखाने वालों, मल्ल - पहलवानों, मौष्टिक - मुक्केबाजों, विडंबक - विदूषकों- मसखरों, कथक - कथा कहने वालों, प्लवक - छलांग लगाने या नदी आदि में तैरने का प्रदर्शन करने वालों, लासक - वीर रस की गाथाएँ या रास गाने वालों के कौतुक - तमाशे देखने हेतु लोग एकत्र होते हैं ? आयुष्मन् श्रमण गौतम! ऐसा नहीं होता। क्योंकि उन मनुष्य के मन में कौतूहल देखने की उत्सुकता नहीं होती । (१३) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे सगडाइ वा, रहाइ वा, जाणांइ वा, जुगाड़ वा, गिल्लीइ वा, थिल्लीइ वा, सीआइ वा, संदमाणिआइ वा ? णो इट्टे समट्ठे, पायचार-विहारा णं ते मणुआ पण्णत्ता समणाउसो ! (१३) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में शकट - बैलगाड़ी, रथ, यान - दूसरे वाहन, युग्यपुरातनकालीन गोल्ल देश में सुप्रसिद्ध दो हाथ लम्बे चौड़े डोली जैसे यान, गिल्लि - दो पुरुषों द्वारा उठाई जाने वाली डोली, थिल्लि -दो घोड़ों या खच्चरों द्वारा खींची जाने वाली बग्घी, शिविका - पर्देदार पालखियाँ तथा स्यन्दमानिका - पुरुष - प्रमाण पालखियाँ - ये सब होते हैं ? आयुष्मन् श्रमण गौतम! ऐसा नहीं होता, क्योंकि वे मनुष्य पादचारविहारी - पैदल चलने की प्रवृत्ति वाले होते हैं । (१४) अत्थि णं भंते ! तीसे समाए भरहे वासे गावीइ वा, महिसीइ वा, अयाइ वा, एलगाइ वा, ? हंता अत्थि, णो चेवणं तेसिं मणुआणं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति । (१४) भगवन् ! क्या उस समय भरतक्षेत्र में गाय, भैंस, अजा-बकरी, एडका - भेड़ - ये सब पशु होते हैं ? गौतम ! ये पशु होते हैं किन्तु उन मनुष्यों के उपयोग में नहीं आते। (१५) अत्थि णं भंते! तीसे समाए भरहे वासे आसाइ वा, हत्थीइ वा, उट्ठाइ वा, गोणाई वा, गवयाइ वा, अयाइ वा, एलगाइ वा, पसयाइ वा, मिआइ वा, वराहाइ वा, रुरुति वा, सरभाई वा, चमराइ वा, सबराइ वा, कुरंगाइ वा, गोकण्णाइ वा ? हंता अस्थि, णो चेव णं तेसिं परिभोगत्ताए हव्वमागच्छंति । (१५) भगवन्! क्या उस समय भरतक्षेत्र में घोड़े, ऊँट, हाथी, गाय, गवय - वनैली गाय, बकरी,
SR No.003460
Book TitleAgam 18 Upang 07 Jambudveep Pragnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni, Chhaganlal Shastri, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages482
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Geography, & agam_jambudwipapragnapti
File Size10 MB
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