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## Anadhyaya Kaal (Excerpt from Nandi Sutra, edited by Acharya Pravara Shri Atmaramji Maharaj)
The study of scriptures should be done only during the time prescribed in the Agamas for self-study. Studying during the Anadhyaya Kaal is prohibited.
The Manusmriti and other Smritis also describe Anadhyaya Kaal in detail. Vedic people also mention the Anadhyayas of the Vedas. Similarly, other Aarya Granthas are also considered Anadhyaya. Since the Jain Agamas are considered Sarvajnokt (spoken by the omniscient), Devaadhisthit (divine), and Swaravidya (self-knowledge), their Anadhyaya Kaal is also mentioned in the Agamas. For example:
**Ten Anadhyayas related to the sky:**
1. Ukkavaate (meteor shower): If there is a large meteor shower, one should not study scriptures for one prahar (3 hours).
**Ten Anadhyayas related to the body:**
1. Atthi (bone): One should not study scriptures when a bone is broken.
**Four Mahapratipada (major festivals):**
1. Ashadha Padivaa
2. Inda Mahapadivaa
3. Katta Padivaa
4. Sugimha Padivaa
**Four Mahapratipada Purnima (full moon days of major festivals):**
1. Ashadha Padivaa Purnima
2. Inda Mahapadivaa Purnima
3. Katta Padivaa Purnima
4. Sugimha Padivaa Purnima
**Four Sandhya (twilight times):**
1. Pradimate (dawn)
2. Pachchimaate (sunset)
3. Majjhane (noon)
4. Addharatte (midnight)
**Four Kaal (times):**
1. Puvvane (morning)
2. Avarane (afternoon)
3. Paose (evening)
4. Pacchuse (night)
According to the above Sutrapath, there are 32 Anadhyayas, which are divided into ten related to the sky, ten related to the body, four Mahapratipada, four Mahapratipada Purnima, and four Sandhya. These are briefly described as follows:
**Ten Anadhyayas related to the sky:**
1. Ukkavaate (meteor shower): If there is a large meteor shower, one should not study scriptures for one prahar (3 hours).
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अनध्यायकाल (स्व. आचार्यप्रवर श्री आत्मारामजी म. द्वारा सम्पादित नन्दीसूत्र से उद्धृत)
स्वध्याय के लिये आगमों में जो समय बताया गया है, उसी समय शास्त्रों का स्वाध्याय करना चाहिए। अनध्यायकाल में स्वाध्याय वर्जित है।
मनुस्मृति आदि स्मृतियों में भी अनध्यायकाल का विस्तारपूर्वक वर्णन किया गया है। वैदिक लोग भी वेद के अनध्यायों का उल्लेख करते हैं। इसी प्रकार अन्य आर्ष ग्रन्थों का भी अनध्याय माना जाता है। जैनागम भी सर्वज्ञोक्त, देवाधिष्ठित तथा स्वरविद्या संयुक्त होने के कारण, इनका भी आगमों में अनध्यायकाल वर्णित किया गया है, जैसे कि -
दसविधे अंतलिक्खिते असज्झाए पण्णत्ते, तं जहा - उक्कावाते, दिसिदाघे, गजिते, विजुते, निग्घाते, जुवते, जक्खालित्ते, धूमिता, महिता, रयउग्घाते।
दसविहे ओरालिते असज्झातिते, तं जहा - अट्ठी, मंसं, सोणिते, असुतिसामंते, सुसाणसामंते, चंदोवराते, सूरोवराते, पडने, रायवुग्गहे, उवस्सयस्स अंतो ओरालिए सरीरगे।
- स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान १० नो कप्पति निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा चउहिं माहापाडिवएहिं सज्झायं करित्तए, तं जहा - आसाढपाडिवए, इंदमहापाडिवए, कत्तअपाडिवए सुगिम्हपाडिवए। नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा, चउहिं संझाहिं सज्झायं करेत्तए, तं जहा – पडिमाते, पच्छिमाते मज्झण्हे, अड्ढरत्ते। कप्पइ निग्गंथाणं वा निग्गंथीण वा, चाउक्कालं सज्झायं करेत्तए, तं जहा - पुव्वण्हे अवरण्हे, पओसे, पच्चूसे।
- - स्थानाङ्ग सूत्र, स्थान ४, उद्देशक २ उपर्युक्त सूत्रपाठ के अनुसार, दस आकाश से सम्बन्धित, दस औदारिक शरीर से सम्बन्धित, चार महाप्रतिपदा, चार महाप्रतिपदा की पूर्णिमा और चार संध्या, इस प्रकार बत्तीस अनध्याय माने गए हैं, जिनका संक्षेप में निम्न प्रकार से वर्णन है, जैसे - आकाश सम्बन्धी दस अनध्याय
१. उल्कापात-तारापतन - यदि महत् तारापतन हुआ है तो एक प्रहर पर्यन्त शास्त्रस्वाध्याय नहीं करना चाहिए।