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________________ अर्थ-प्रदाता श्रीमान् चंपालालजी सा० हिंगड़ (संक्षिप्त जीवन-परिचय) अजमेर का उपनगर दौराई ग्राम किसी जमाने में देवपुरी के नाम से विश्रुत था। वहां के प्रसिद्ध सेठ श्रीमान् सुवालालजी सा. हिंगड़ ने प्रबल पुरुषार्थ से व्यापार धंधे में अपार सम्पत्ति अर्जित की। आपके पूर्वजों ने भी अनेक अनुकरणीय कार्य किये जिसके परिणामस्वरूप दौराई ग्राम हिंगड़ों का कहलाया। . सेठ सुवालालजी की धर्मपत्नी श्रीमती शृंगारदेवी बड़ी साहसिक एवं बुद्धिशालिनी महिला थीं। इनके विवाह के समय की घटना है - श्रीमती शृंगारदेवी के विवाह के समय बारातियों की संख्या अधिक देख उनके पिता श्रीमान् सुगनचंदजी रांका (मसूदा निवासी) ने आगन्तुक बारातियों की अच्छी व्यवस्था हेतु शृंगारदेवी के ससुरश्री से तीन सौ रुपये उधार लिए। इस बात की जानकारी शृंगारदेवी को होते ही उन्होंने संकल्प कर लिया कि मैं जीवन पर्यन्त कभी पीहर नहीं जाऊंगी क्योंकि मेरे पिताजी ने मुझे तीन सौ रुपयों में बेच दिया है। उन्होंने अपनी इस प्रतिज्ञा को जीवन के अन्तिम क्षण तक निभाया। इसी प्रकार साहसी महिला श्रृंगारदेवी के जीवन संबंधी अनेक प्रसंग हैं। इन्हीं की कुक्षि से श्रीमान चंपालालजी का जन्म हुआ। आप नौ भाई-बहिनों में से सबसे छोटे थे। पिता की ज्योति पुत्र में चमकती है, यह पूर्ण सत्य तो नहीं है, किन्तु अर्द्ध-सत्य अवश्य है। श्री चंपालालजी में तो यह सत्य उतरा और पूरी तरह उतरा। आप प्रारम्भ से ही प्रतिभाशाली तथा पढ़ने में तीव्र बुद्धि वाले थे। आपने प्रारम्भिक शिक्षा अजमेर-सराधना में प्राप्त की, तत्पश्चात् उच्च शिक्षा ब्यावर गुरुकुल में रहकर प्राप्त की। साथ ही आपने अपनी प्रखर प्रज्ञा के द्वारा उच्च शिक्षा के साथ अध्यात्म में विशेष रुचि होने से ब्यावर निवासी श्री पूनमचंदजी सा. खिंवेसरा के पास सामायिक प्रतिक्रमण, पच्चीस बोल आदि का भी अध्ययन किया। "होनहार विरवान के होत चीकने पात" की उक्ति के अनुसार आप बचपन से ही सुसंस्कारी थे। उनकी विशिष्ट योग्यता का आकलन करते हुए उन्हीं के पारिवारिक जन कहा करते थे - चंपक! छोटी सी आय में ही आर्थिक औद्योगिक. शैक्षणिक एवं आध्यात्मिक आदि विभिन्न प्रकार की विकास योजना में व्यस्त हो गया। आप में उदारता, धैर्य, साहस, कठोर कार्य करने की क्षमता, स्वजन-परिजन के प्रति आत्मिक भाव, धार्मिक संस्कार आदि विशिष्ट गुण जन्मजात थे। कतिपय प्रसंग प्रस्तुत हैं एक बार का प्रसंग है। गांव के पटेल भूरालालजी के बैल चोर लेकर भाग गये। पटेल के साथ गांव के लोगों ने भी शोर मचाया किन्तु चोरों का सामना किसी ने नहीं किया। भयंकर बरसात की अंधेरी रात में चंपालालजी को मालूम हुआ तो बिना कहे-सने मकान की तीसरी मंजिल से कांटों को बाड में छलांग लगा कर चोरों का पीछा किया। गांव के पहले ७ कि०मी० की दूरी पर जाकर चोरों को परास्त कर बैलों को छडाकर पटेल के हवाले किया। दया के तो वे सागर ही थे। जब कभी रास्ते चलते कोई गरीब असहाय मिल जाता तो तत्काल उसके दुःख दूर करने का प्रयास करते। आपका विवाह संवत् १९९० की माघ शुक्ला सप्तमी को अपने बड़े भाई की साली एवं श्रीमान् जगन्नाथसिंहजी एवं अनूपादेवी की सुपुत्री उमाजी (अलोल बाई) के साथ बहुत संघर्षों के बाद हुआ। बात की बात में डेढ़ वर्ष निकल गया। संवत् १९९२ चैत्र शुक्ला तृतीया को आपका आकस्मिक निधन हो गया। आखिरी समय में न जाने किसकी प्रेरणा रही कि सात महिने पहले ही पांचों विगय का त्याग कर दिया था।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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