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________________ ६२] [तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] एकेन्द्रिय जीवों में ज्ञानावरणीयादि कर्मों की बंधस्थिति की प्ररूपणा १७०५. एगिंदिया णं भंते! जीवा णाणावरणिजस्स कम्मस्स किं बंधति ? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स तिण्णि सत्तभागे पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणए, उक्कोसेणं ते चेव पडिपुण्णे बंधति? | [१७०५ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव ज्ञानावरणीयकर्म कितने काल का बांधते हैं ? [१७०५ उ.] गौतम! वे जघन्यतः पल्योपम के असंख्यातवयें भाग कम सागरोपम के ३/७ भाग का बन्ध करते हैं और उत्कृष्टतः पूरे सागरोपम के ३/७ भाग का बन्ध करते है। १७०६. एवं णिहापंचकस्स वि दंसणचउक्कस्स वि । [१७०६] इसी प्रकार निद्रापंचक और दर्शनचतुष्क का (जघन्य और उत्कृष्ट) बन्ध भी ज्ञानावरणीयपंचक के समान जानना चाहिए । १७०७. [१] एगिंदिया णं भंते! जीवा सातावेयणिजस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमस्स दिवड्ढं सत्तभागं पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधंति। [१७०७-१ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय जीव सातावेदनीयकर्म कितने काल का बांधते हैं ? [१७०७-१ उ.] गौतम! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम सागरोपम के " भाग का और उत्कृष्ट पूरे सागरोपम के भाग का बन्ध करते हैं। १७०७. [२] असायावेयणिजस्स जहा णाणावरणिजस्स (सु. १७०५)। [१७०७-२] असातावेदनीय का (जघन्य और उत्कृष्ट) बन्ध ज्ञानावरणीय के समान जानना चाहिए। १७०८. [१] एगिदिया णं भंते! जीवा सम्मत्तवेयणिजस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा! णत्थि किंचि बंधंति। [१७०८-१ प्र.] भगवन्! एकेन्द्रिय जीव सम्यक्त्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म कितने काल का बांधते हैं ? [१७०८-२ उ.] गौतम! वे किसी भी काल का बंध नहीं करते - बन्ध करते ही नहीं हैं । [२] एगिंदिया णं भंते! जीवा मिच्छत्तवेयणिजस्स कम्मस्स किं बंधंति ? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमं पलिओवमस्स असंखेजइभागेणं ऊणयं, उक्कोसेणं तं चेव पडिपुण्णं बंधति । [१७०८-२ प्र.] भगवन्! एकेन्द्रिय जीव मिथ्यात्ववेदनीय (मोहनीय) कर्म कितने काल का बांधते हैं ? __ [१७०८-२ उ.] गौतम! वे जघन्य पल्योपम के असंख्यातवें भाग कम एक सागरोपम काल का बांधते हैं और उत्कृष्ट एक परिपूर्ण सागरोपम का बांधते हैं।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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