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[ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] [६] सरीरसंघायणामे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते? . गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तं जहा-ओरालियसरीरसंघातणामे जाव कम्मगसरीरसंघायणामे। • [१६९४-६ प्र.] भगवन् ! शरीरसंघातनाम कितने प्रकार का कहा है ?
[१६९४-६ उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा – औदारिकशरीरसंघातनाम यावत् कार्मणशरीरसंघातनाम।
[७] संघयणणामे णं भंते! कतिविहे पण्णत्ते?
गोयमा! छव्विहे पण्णत्ते। जहा - वइरोसभणारायसंघयणणामे १ उसभणारायसंघयणणामे २ णारायसंघयणणामे ३ अद्धणारायसंघयणणामे ४ कीलियासंघयणणामे ५ छेवट्टसंघयणणामे ६।
[१६९४-७ प्र.] भगवन् ! संहनननाम कितने प्रकार का कहा गया है ? - [१६९४-७ उ.] गौतम! वह छह प्रकार का कहा गया है, यथा – (१) वज्रऋषभनाराचसंहनननाम, (२) ऋषभनाराचसंहनननाम, (३) नाराचसंहनननाम, (४) अर्द्धनाराचसंहनननाम, (५) कीलिकासंहनननाम और (६)
सेवार्त्तसंहनननामकर्म। .. [८] संठाणणामे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! छव्विहे पण्णत्ते। तं जहा - समचउरंससंठाणणामे १ णग्गोहपरिमंडलसंठाणणामे २ सातिसंठाणणामे ३ वामणसंठाणणामे ४ खुजसंठाणणामे ५ हुंडसंठाणणामे ६।
[१६९४-८ प्र.] भगवन् ! संस्थाननाम कितने प्रकार का कहा गया है?
[१६९४-८ उ.] गौतम! वह छह प्रकार का कहा गया है, यथा – (१) समचतुरस्रसंस्थाननाम, (२) न्यग्रोधपरिमण्डलसंस्थाननाम, (३) सादिसंस्थाननाम, (४) वामनसंस्थाननाम, (५) कुब्जसंस्थाननाम और (६) हुण्डकसंस्थाननामकर्म।
[९] वण्णणामे णं भंते! कम्मे कतिविहे पण्णत्ते? गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते। तं जहा - कालवण्णणामे जाव सुक्किलवण्णणामे। [१६९४-९ प्र.] भगवन् ! वर्णनामकर्म कितने प्रकार का कहा गया है ? [१६९४-९ उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा - कालवर्णनाम यावत् शुक्लवर्णनाम। [१०] गंधणामे णं भंते! कम्मे ० पुच्छा। गोयमा! दुविहे पण्णत्ते। तं जहा - सुरभिगंधणामे १ दुरभिगंधणामे २। [१६९४-१० प्र.] भगवन् ! गन्धनामकर्म कितने प्रकार का कहा है ? [१६९४-१० उ.] गौतम! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा – सुरभिगन्धनाम और दुरभिगन्धनामकर्म। [११] रसणामे णं० पुच्छा।