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________________ [छत्तीसवाँ समुद्घातपद] [२५९ २१३२. वाणव्यन्तर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा असुरकुमारा। [२१३२] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के (समुद्घात विषयक अल्पबहुत्व की वक्तव्यता) असुरकुमारों के समान (समझनी चाहिए।) विवेचन - समवहत जीवों की न्यूनाधिकता का कारण - आहारकसमुद्घात किए हुए जीव सबसे कम इसलिए हैं कि लोक में आहारकशरीरधारकों का विरहकाल छह मास का बताया गया है। अतएव किसी समय नहीं भी होते हैं । जब होते हैं, तब भी जघन्य एक, दो अथवा तीन और उत्कृष्ट सहस्रपृथक्त्व (दो हजार से नौ हजार तक) ही होते हैं। फिर आहारकसमुद्घात आहारकशरीर के प्रारम्भकाल में ही होता है, अन्य समय में नहीं, इस कारण आहारकसमुद्घात से समवहत जीव भी थोड़े ही कहे गए हैं। आहारकसमुद्घात वालों की अपेक्षा केवलिसमुद्घात से समवहत जीव संख्यातगुणा अधिक हैं, क्योंकि वे एक साथ शतपृथक्त्व की संख्या में उपलब्ध होते हैं। ___ उनकी अपेक्षा वैक्रियसमुद्घात समवहत जीव असंख्यातगुणा होते हैं, क्योंकि वैक्रियसमुद्घात नारकों, वायुकायिकों, तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों, मनुष्यों और देवों में भी पाया जाता है। वैक्रियलब्धि से युक्त वायुकायिकजीव देवों से भी असंख्यातगुणा हैं और बादरपर्याय वायुकायिक स्थलचर पंचेन्द्रियों की अपेक्षा भी असंख्यातगुणा हैं, स्थलचरपंचेन्द्रिय, देवों से भी असंख्यात गुणा हैं। इस कारण तैजससमुद्घात समवहत जीवों की अपेक्षा वैक्रियसमुद्घात से समवहत जीव असंख्यातगुणे अधिक समझने चाहिए। वैक्रियसमुद्घात से समवहत जीवों की अपेक्षा मारणान्तिकसमुद्घात वाले जीव अनन्तगुणा हैं, क्योंकि निगोद के अनन्तजीवों का असंख्यातवाँ भाग सदा विग्रहगति की अवस्था में रहता है और वे प्रायः मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत होते हैं। इनसे कषायसमुद्घात समवहत जीव असंख्यातगुणा हैं, क्योंकि विग्रहगति को प्राप्त अनन्त निगोदजीवों की अपेक्षा भी असंख्यातगुणा अधिक निगोदिया जीव सदैव कषायसमुद्घात से युक्त उपलब्ध होते हैं । इनसे वेदनासमुद्घात से समवहत जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि कषायसमुद्घात समवहत उन अनन्त निगोदजीवों से वेदनासमुद्घातसमवहत जीव कुछ अधिक ही होते हैं। वेदनासमुद्घात-समवहत जीवों की अपेक्षा असमवहत (अर्थात् जो किसी भी समुद्घात से युक्त नहीं हों, ऐसे समुद्घात रहित जीव) असंख्यातगुणा होते हैं, क्योंकि वेदना, कषाय और मारणान्तिक समुद्घात से समवहत जीवों की अपेक्षा समुद्घात रहित) अकेले निगोदजीव ही असंख्यातगुणा अधिक पाए जाते हैं।' नारकों में समुद्घातजनित अल्पबहुत्व - सबसे कम मारणान्तिकसमुद्घात से समवहत नारक हैं, क्योंकि मारणान्तिकसमुद्घात मरण के समय ही होता हैं और मरने वाले नारकों की संख्या, जीवित नारकों की अपेक्षा अल्प १. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भा. ५, पृ. १०१४ से १०१६ तक (ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि.रा.कोष, भा. ७, पृ. ४४६
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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