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________________ १२] [ तेईसवाँ कर्मप्रकृतिपद] निष्कर्ष-(मूलपाठ के अनुसार) जीव अपने वीर्य से उपार्जित पूर्वोक्त (दो और) चार कारणों से ज्ञानावरणीय तथा शेष सात कर्मों का बंध करता है | करते हैं।' चतुर्थद्वार : कति-प्रकृतिवेदन-द्वार १६७५. जीवे णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं वेदेइ ? गोयमा ! अत्थेगइए वेदेइ, अत्थेगइए णो वेदेइ । [१६७५ प्र.] भगवन् ! क्या जीव ज्ञानावरणीय कर्म का वेदन करता है ? [१६७५ उ.] गौतम ! कोई जीव (ज्ञानावरणीय कर्म का) वेदन करता है और कोई नहीं करता है। १६७६. [१] णेरइए णं भत्ते! णाणावरणिज कम्मं वेदेइ ? गोयमा ! णियमा वेदेइ। [१६७६-१ प्र.] भगवन् ! क्या नारक ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन करता (भोगता) है ? [१६७६-१ उ.] गौतम! वह नियम से वेदन करता है। [२] एवं जाव वेमाणिए। णवरं मणूसे जहा जीवे (सु. १६७५)। [१६७६-२] (असुरकुमार से लेकर) वैमानिकपर्यन्त इसी प्रकार जानना चाहिए, किन्तु मनुष्य के विषय में (सू. १६७५ में उक्त) जीव में समान वक्तव्यता समझनी चाहिए। १६७७ [१] जीवा णं भत्ते! णाणावरणिज कम्मं वेदेति ? गोयमा ! एवं चेव। [१६७७-१ प्र.] भगवन् ! क्या बहुत जीव ज्ञानावरणीयकर्म का वेदन (अनुभव) करते हैं ? [१६७७-१ उ.] गौतम ! पूर्ववत् सभी कथन जानना चाहिये। [२] एवं जाव वेमाणिया। [१६७७-२] इसी प्रकार (बहुत से नैरयिकों से लेकर) वैमानिकों तक कहना चाहिए। १६७८.[१] एवं जहा णाणावरणिजं तहा दंसणावरणि मोहणिजं अंतराइयं च। [१६७८-१] जिस प्रकार ज्ञानावरणीय के सम्बन्ध में कथन किया गया है, उसी प्रकार दर्शनावरणीय, मोहनीय और अन्तरायकर्म के वेदन के विषय में समझना चाहिए। [२] वेदणिजाऽऽउंय-णाम-गोयाइं एवं चेव। णवरं मणूसे वि णियमा वेदेति। [१६७८-२] वेदनीय, आयु, नाम और गोत्रकर्म के जीव द्वारा वेदन के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए, किन्तु मनुष्य (इन चारों कर्मों का) वेदन नियम से करता है। १. वही प्रज्ञापना प्रमेयबोधिनी टीका पृ. १६९
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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