________________
२५०]
[ प्रज्ञापनासूत्र ]
किसी नारक के मनुष्यपर्याय में भावी आहारकसमुद्घात किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं। जिस प्रकार नारक के मनुष्यपर्याय में आहारकसमुद्घात कहे हैं, उसी प्रकार असुरकुमार आदि सभी जीवों के अतीत एवं भावी मनुष्यपर्याय में भी कहना चाहिए। किन्तु मनुष्यपर्याय में किसी मनुष्य के अतीत आहारकसमुद्घात होते हैं, किसी के नहीं होते हैं। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन आहारकसमुद्घात होते हैं। अतीत आहारकसमुद्घात की तरह भावी आहारकसमुद्घात ' भी किसी के होते हैं, किसी के नहीं होते हैं। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार आहारकसमुद्घात होते हैं। इस प्रकार इन २४ दण्डकों में से प्रत्येक को चौबीस दण्डकों में क्रमश: घटित करके कहना चाहिए। ये सब मिलाकर १०५६ अलापक होते हैं। यह ध्यान रहे कि मनुष्य के सिवाय किसी में भी आहारकसमुद्घात नहीं होता ।
केवलिसमुद्घात - नारक के नारकपर्याय में अतीत अथवा अनागत केवलिसमुद्घात नहीं होता, क्योंकि नारक केवलिसमुद्घात कर ही नहीं सकता। इसी प्रकार यावत् वैमानिकपर्याय में वैमानिक के अतीत और अनागत केवलिसमुद्घात का अभाव है, क्योंकि इनमें केवलिसमुद्घात का होना कदापि सम्भव नहीं है। हाँ, नारक आदि के मनुष्यपर्याय में केवलिसमुद्घात होता है, किन्तु उसमें भी अतीत केवलिसमुद्घात नहीं होता । भावी केवलिसमुद्घात किसी नारक के मनुष्यपर्याय में होता है, किसी के नहीं होता। जिसके होता है, उसके एक ही होता है। मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत और भावी केवलिसमुद्घात किसी के होता है, किसी के नहीं होता। जिसके होता है, एक ही होता है। इस प्रकार मनुष्यपर्याय के सिवास सभी स्व-पर-स्थानों में केवलिसमुद्घात का अभाव कहना चाहिए। इस प्रकार इस केवलिसमुद्घात सम्बन्धी चौबीस दण्डकों में से प्रत्येक में चौबीस दण्डक घटित किए गए हैं। ये सब विधिनिषेध के कुल आलाप १०५६ हैं ।
चौबीस दण्डकों की चौवीस दण्डक-पर्यायों में बहुत्व की अपेक्षा से अतीतादि समुद्घात
प्ररूपणा
हैं ?
२१२१. [ १ ] णेरइयाणं भंते! णंरइयत्ते केवतिया वेदणासमुग्धाया अतीया ?
गोयमा ! अनंता ।
केवतिया पुरेक्खडा ?
गोयमा! अणंता। एवं जाव वेमाणियत्ते ।
[२१२१-१ प्र.]भगवन्! (बहुत-से) नारकों के नारकपर्याय में रहते हुए कितने वेदनासमुद्घात अतीत हुए
[२१२१-१ उ.] गौतम! वे अनन्त हुए हैं।
[प्र.] भगवन्! (नारकों के) भावी (वेदनासमुद्घात) कितने होते हैं ?
१. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष, भा. ७, पृ. ४४३
२. अ. रा. कोष. भाग ७, पृ. ४४३