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________________ २४४] [ प्रज्ञापनासूत्र ] [२११९-४] मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत आहारकसमुद्घात किसी के हुए हैं, किसी के नहीं हुए। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट चार होते हैं। इसी प्रकार भावी (आहारकसमुद्घात) जानना चाहिए । [५] एवमेते वि चडवीसं चडवीसा दंडगा जाव वेमाणियस्स वेमाणियत्ते । [२११९-५] इस प्रकार ये चौवीस दण्डक चौवीसों दण्डकों में यावत् वैमानिकपर्याय में (आहारकसमुद्घात तक) कहना चाहिए। २१२०. [ १ ] एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स णेरइयत्ते केवतिया केवलिसमुग्धाया अतीया ? गोयमा । णत्थि । केवतिगा पुरेक्खडा ? गोयमा ! णत्थि । [२१२०-१ प्र.] भगवन्! एक-एक नैरयिक के नारकत्वपर्याय में कितने केवलिसमुद्घात अतीत हु [२१२०-१ उ.] गौतम! नहीं हुए है । [प्र.] भगवन्! इसके भावी (केवलिसमुद्घात) कितने होते हैं ? [.] गौतम! वे भी नहीं होते । हैं ? [२] एवं जाव वेमाणियत्ते । णवरं मणूसत्ते अतीया णत्थि, पुरेक्खडा कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि एक्को । [२१२०-२] इसी प्रकार वैमानिकपर्याय तक में (केवलिसमुद्घात कहना चाहिए ।) विशेष यह है कि मनुष्यपर्याय में अतीत (केवलिसमुद्घात) नहीं होता। भावी (केवलिसमुद्घात) किसी के होता है, किसी के नहीं होता है। जिसके होता है, उसके एक होता है। [३] मणूसस्स मणूसत्ते अतीया कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सऽत्थि इक्को। एवं पुरेक्खडा वि। [२१२०-३] मनुष्य के मनुष्यपर्याय में अतीत केवलिसमुद्घात किसी के होता है, किसी के नहीं होता । जिसके होता है, उसके एक होता है। इसी प्रकार भावी (केवलिसमुद्घात के विषय में भी कहना चाहिए।) [४] एवमेते चउवीसं चउवीसा दंडगा । [२१२०-४] इस प्रकार ये चौवीसों दण्डक चौवीसों दण्डकों में (जानना चाहिए।) पहले विवेचन - एक - एक जीव के नारकत्वादि पर्याय में अतीत- अनागत-समुद्घात-प्ररूपणा यह प्रश्न किया गया था कि नारक के अतीत समुद्घात कितने है ? यहाँ यह प्रश्न किया जा रहा है कि नारक ने नारक अवस्था में रहते हुए कितने वेदना समुद्घात किए ? अर्थात् - पहले नारकजीव के द्वारा चौवीस दण्डकों में से किसी भी दण्डक में किए हुए वेदनासमुद्घातों की गणना विवक्षित थी, जबकि यहां पर केवल नारकपर्याय में किए
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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