________________
[छत्तीसवाँ समुद्घातपद]
[२३१ जाते है कि तिर्यञ्चपंचेद्रियों आदि में आहारकलब्धि और केवलित्व नहीं होते। अत: अन्तिम दो समुद्घात उनमें नहीं पाये जाते। चौवीस दण्डकों में एकत्वरूप से अतीतादि-समुद्घात-प्ररूपणा
२०९३. [१] एगमेगस्स णं भंते! णेरइयस्स केवतिया वेदणासमुग्घाया अतीता ? गोयमा! अणंता। केवतिया पुरेक्खडा?
गोयमा! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्स अत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं संखेजा वा असंखेजा वा अणंता वा।
[२०९३-१ प्र.] भगवन् ! एक-एक नारक के कितने वेदनासमुद्घात अतीत-व्यतीत हुए हैं ? [२०९३-१ उ.] हे गौतम! वे अनन्त हुए हैं। [प्र.] भगवन्! वे भविष्य में (आगे) कितने होने वाले हैं ?
[उ.] गौतम! किसी के होते हैं और किसी के नहीं होते। जिसके होते हैं, उसके जघन्य एक, दो या तीन होते हैं और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात या अनन्त होते हैं।
[२] एवं असुरकुमारस्स वि, णिरंतरं जाव वेमाणियस्स।
[२०९३-२] इसी प्रकार असुरकुमार के विषय में भी जानना चाहिए। यहाँ से लगाकर वैमानिक पर्यन्त इसी प्रकार कहना चाहिए।
२०९४. [१] एवं जाव तेयगसमुग्घाए। [२०९४-१] इसी प्रकार तैजससमुद्घात तक (जानना चाहिए।) [२] एवं एते पंच चउवीसा दंडगा।
[२०९४-२] इसी प्रकार ये पांचों समुद्घात (वेदना, कषाय, मारणान्तिक, वैक्रिय और तैजस) भी चौवीस दण्डकों के क्रम से समझ लेने चाहिए।
२०९५. [१] एगमेगस्स णं भंते ! णेरइयस्स केवतिया आहारगसमुग्घाया अतीता? गोयमा! कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा, उक्कोसेणं तिण्णि । केवतिय पुरेक्खडा? कस्सइ अस्थि कस्सइ णत्थि, जस्सत्थि जहण्णेणं एक्को वा दो वा तिण्णि वा, उक्कोसेणं चत्तारि। [२०९५-१ प्र.] भगवन्! एक-एक नारक के अतीत आहारकसमुद्घाात कितने हैं ?
१. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रा. कोष भा. ७, पृ. ४३६