________________
२१८]
[ प्रज्ञापनासूत्र] वेदता है। जैसे ईशानेन्द्र ने बलिचंचा राजधानी के निवासी असुरकुमारों को संतप्त कर दिया था अथवा उष्ण पुद्गलों के सम्पर्क से भी वे उष्णवेदना वेदते हैं। _____ जब शरीर के विभिन्न अवयवों में एक साथ शीत और उष्ण पुद्गलों का सम्पर्क होता हैं, तब वे शीतोष्णवेदना वेदते हैं । पृथ्वीकायिकों से लेकर मनुष्य पर्यन्त बर्फ आदि पड़ने पर शीतवेदना वेदते हैं, अग्नि आदि का सम्पर्क होने पर उष्णवेदना वेदते हैं तथा विभिन्न अवयवों में दोनों प्रकार के पुद्गलों का संयोग होने पर शीतोष्णवेदना वेदते हैं।' द्वितीय द्रव्यादि-वेदनाद्वार
२०६०. कतिविहा णं भंते ! वेदणा पण्णत्ता? गोयमा! चउव्विहा वेदणा पण्णत्ता। तं जहा--दव्वओ खेत्तओ कालओ भावतो। [२०६० प्र.] भगवान् ! वेदना कितने प्रकार की कही गई है ?
[२०६० उ.] गौतम! वेदना चार प्रकार की कही गई है, यथा – (१) द्रव्यतः, (२) क्षेत्रतः, (३) कालत: और (४) भावतः (वेदना)।
२०६१. णेरइया णं भंते ! किं दव्वओ वेदणं वेदेति जाव किं भावओ वेदणं वेदेति ? गोयमा! दव्वओ वि वेदणं वेदेति जाव भावओ वि वेदणं वेदेति । [२०६१ प्र.] भगवान् ! नैरयिक क्या द्रव्यत: वेदना वेदते हैं यावत् भावतः वेदना वेदते हैं ? [२०६१ उ.] गौतम ! वे द्रव्य से भी वेदना वेदते हैं, क्षेत्र से भी वेदते हैं यावत् भाव से भी वेदना वेदते हैं। २०६२. एवं जाव वेमाणिया। [२०६२] इसी प्रकार का कथन वैमानिकों पर्यन्त करना चाहिए।
विवेचन-चतुर्विध वेदना का तात्पर्य- वेदना की उत्पत्ति द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव रूप सामग्री के निमित्त से होती है, इसलिए द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से चार प्रकार से वेदना कही है। किसी पुद्गल आदि द्रव्य के संयोग से उत्पन्न होने वाली वेदना द्रव्यवेदना कहलाती है। नारक आदि उपपातक्षेत्र आदि से होने वाली वेदना क्षेत्रवेदना कही जाती है। ऋतु, दिन-रात आदि काल के संयोग से होने वाली वेदना कालवेदना कहलाती है और वेदनीयकर्म के उदयरूप प्रधान कारण से उत्पन्न होने वाली वेदना भाववेदना कहलाती है। चौबीस ही दण्डकों के जीव पूर्वोक्त चारों प्रकार से वेदना का अनुभव करते हैं।' तृतीय शारीरादि-वेदनाद्वार .. २०६३. कतिविहा णं भंते! वेयणा पण्णत्ता?
गोयमा! तिविहा वेदणा पण्णत्ता। तं जहा-सारीरा १ माणसा २ सारीरमाणसा ३। १. प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका) भाग ५, पृ. ८८६-८८७ २. (क) प्रज्ञापना. (प्रमेयबोधिनी टीका), भा. ५, पृ. ८८८
(ख) प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, अभि. रो.कोष. भाग ६, पृ. १४३९