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________________ [ चौतीसवाँ परिचारणापद ] [२०७ सेकेणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा तं चैव जाव णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा ? गोयमा ! भवणवति - वाणमंतर - जोतिस - सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा सदेवीया सपरियारा, सणंकुमारमाहिंद-बंभलोग-लंतग- महासुक्क - सहस्सार - आणय-पाणय- आरण-अच्चुएसु कप्पेसु देवा अदेवीया सपरियारा, गेवेज्जऽणुत्तरोववाइयदेवा अदेवीया अपरियारा, णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा, से तेणट्ठेणं गोयमा ! एवं वुच्चति अत्थेगइया देवा सदेवीया सपरियारा तं चेव जाव णो चेव णं देवा सदेवीया अपरियारा । [२०५१ प्र.] भगवन्! (१) क्या देव देवियों सहित और सपरिचार (परिचारयुक्त) होते हैं ?, (२) अथवा वे देवियों सहित एवं अपरिचार (परिचाररहित) होते हैं ?, (३) अथवा वे देवीरहित एवं परिचारयुक्त होते हैं ? या (४) देवीरहित एवं परिचाररहित होते हैं ? [२०५१ उ.] गौतम! (१) कई देव देवियों सहित सपरिचार होते हैं, (२) कई देव देवियों के बिना सपरिचार होते हैं और (३) कई देव देवीरहित और परिचाररहित होते हैं, किन्तु कोई भी देव देवियों सहित अपरिचार (परिचाररहित) नहीं होते हैं । [प्र.] भगवन्! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि कई देव देवीसहित सपरिचार होते हैं, इत्यादि यावत् देवियों सहित परन्तु अपरिचार नहीं होते । [उ.] गौतम ! भवनपति, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और सौधर्म तथा ईशानकल्प के देव देवियों सहित और परिचारसहित होते हैं। सनत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्मलोक, लान्तक, महाशुक्र, सहस्रार, आनत, प्राणत, आरण और अच्युतकल्पों में देव, देवीरहित कितु परिचारसहित होते हैं। नौ ग्रैवेयक और पंच अनुत्तरौपपातिक देव देवीरहित और परिचाररहित होते हैं । किन्तु ऐसा कदापि नहीं होता कि देव देवीसहित हों, साथ ही परिचार- रहित हों । २०५२. [१] कतिविहा णं भंते ! परियारणा पण्णत्ता ? गोयमा ! पंचविहा पण्णत्ता । तं जहा कायपरियारणा १ फासपरियारणा २ रूवपरियारणा ३ सद्दपरियारणा ४ मणपरियारणा ५ । - से केणट्ठेणं भंते! एवं वुच्चति पंचविहा परियारणा पण्णत्ता तं जहा कायपरियारणा जाव मणपरियारणा ? - ! गोयमा! भवणवति-वाणमंतर - जोइस - सोहम्मीसाणेसु कप्पेसु देवा कायपरियारगा, सणकुमारमाहिंदेसु कप्पेसु देवा फासपरियारगा, बंभलोय-लंतगेसु कप्पेसु देवा रूवपरियारगा, महासुक्क सहस्सारेसु देवा सद्दपरियारगा, आणय-पाणय-आरण-अच्चुएसु कप्पेसु देवा मणपरियारगा, गेवेज्जअणुत्तरोववाइया देवा अपरियारगा, से तेणट्ठेणं गोयमा ! तं चेव जाव मणपरियारगा । [२०५२ - १ प्र. ] भगवन् ! परिचारणा कितने प्रकार की कही गई है ?
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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