________________
१८६]
[प्रज्ञापनासूत्र] तिरियं जाव असंखेजे दीव-समुद्दे, उड्ढं जाव सगाई विमाणइं ओहिणा जाणंति-पासंति।
[२००६ प्र.] भगवन् ! उपरिम ग्रैवेयकदेव अवधि (ज्ञान) से कितने क्षेत्र को जानते-देखते हैं ?
[२००६ उ.] गौतम! वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग को और उत्कृष्ट नीचे अधःसप्तमपृथ्वी के निचले चरमान्त (पर्यन्त), तिरछे यावत् असंख्यात द्वीप-समुद्रों को तथा ऊपर अपने विमानों तक (के क्षेत्र) से जानते देखते
२००७ अणुत्तरोववाइयदेवा णं भंते! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति? . गोयमा! संभिन्नं लोगणालिं ओहिणा जाणंति पासंति। [२००७ प्र.] भगवन् ! अनुत्तरोपपातिकदेव अवधि (ज्ञान) द्वारा कितने क्षेत्र को जानते देखते हैं ?
[२००७ उ.] गौतम ! वे सम्पूर्ण (सम्भिन्न) (चौदह रज्जू-प्रमाण) लोकनाडी को अवधि (ज्ञान) से जानतेदेखते हैं।
विवेचन-विभिन्न जीवों की अवधिज्ञान से जानने-देखने की क्षेत्रमर्यादा-अवधिज्ञान के योग्य समस्त नारकों, देवों, मनुष्यों तथा पंचेन्द्रियतिर्यंचों की अवधिज्ञान द्वारा जानने-देखने की क्षेत्रमर्यादा सू. १९८३ से २००७ तक में बताई गई हैं।
इसे सुगमता से समझने के लिए निम्नलिखित तालिका देखिएक्रम अवधिज्ञानयोग्य जीवों के नाम जानने-देखेने की जघन्य क्षेत्रसीमा उत्कृष्ट क्षेत्रसीमा १ समुच्चय नारक
आधा गाऊ
चार गाऊ २ रत्नप्रभापृथ्वीनारक
साढ़े तीन गाऊ
चार गाऊ ३ शर्कराप्रभापृथ्वीनारक
तीन गाऊ
साढ़े तीन गाऊ ४ बालुकाप्रभापृथ्वीनारक
ढाई गाऊ
तीन गाऊ ५ पंकप्रभापृथ्वीनारक
दो गाऊ
ढाई गाऊ ६ धूमप्रभापृथ्वीनारक
डेढ़ गाऊ
दो गाऊ ७ तमःप्रभापृथ्वीनारक
एक गाऊ
डेढ़ गाऊ ८ तमस्तमःप्रभापृथ्वीनारक
आधा गाऊ
एक गाऊ ९ असुरकुमार देव
पच्चीस योजन
असंख्यात द्वीव-समुद्र १० नागकुमारदेव
पच्चीस योजन
संख्यात द्वीप-समुद्र ११ सुपर्णकुमार से स्तनितकुमार तक के देव
पच्चीस योजन
संख्यात द्वीप-समुद्र १२ तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय
अंगुल के असंख्यातवें भाग असंख्यात द्वीप-समुद्र १३ मनुष्य
अंगुल के असंख्यातवें भाग अलोक में लोकप्रमाण असंख्यात
खण्ड (परमावधि की अपेक्षा से)