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________________ [तेतीसवाँ अवधिपद] [१८५ १९९८. सोहम्मगदेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं अहे जाव इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते, तिरियं जाव असंखेजे दीव-समुद्दे, उड्ढे जाव सगाई विमाणाइं ओहिणा जाणंति पासंति। भगवन् ! सौधर्मदेव कितने क्षेत्र को अवधि (ज्ञान) द्वारा जानते-देखते हैं ? गौतम ! वे जघन्य अंगुल के असंख्यातवें भाग क्षेत्र को और उत्कृष्टतः नीचे इस रत्नप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त तक, तिरछे असंख्यात द्वीप-समुद्रों (तक) और ऊपर अपने-अपने विमानों तक (के क्षेत्र) को अवधि (ज्ञान) द्वारा जानते-देखते हैं। १९९९. एवं ईसाणगदेवा वि। . [१९९९] इसी प्रकार ईशानदेवों के विषय में भी कहना चाहिए। २००० सणंकुमारदेवा वि एवं चेव। णवरं अहे जाव दोच्चाए सक्करप्भाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते। [२०००] सनत्कुमार देवों की भी अवधिज्ञान विषयक क्षेत्रमर्यादा इसी प्रकार पूर्ववत् समझना चाहिए। किन्तु विशेष यह है कि ये नीचे दूसरी शर्कराप्रभा नरक पृथ्वी के निचले चरमान्त तक जानते-देखते हैं। २००१. एवं माहिंदगदेवा वि। [२००१] माहेन्द्रदेवों के विषय में भी इसी प्रकार क्षेत्रमर्यादा समझनी चाहिए। २००२ बंभलोग-लंतगदेवा तच्चाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते। . [२००२] ब्रह्मलोक और लान्तकदेव नीचे तीसरी (बालुका) पृथ्वी के निचले चरमान्त तक जानते-देखते हैं। शेष सब पूर्ववत्। २००३. महासुक्क-सहस्सारगदेवा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते। [२००३] महाशुक्र और सहस्रारदेव (नीचे) चौथी पंकप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त (तक जानते-देखते २००४. आणय-पाणय-आरण-अच्चुयदेवा अहे जाव पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते। [२००४] आनत, प्राणत, आरण अच्युत देव नीचे पाँचवीं धूमप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त पर्यन्त जानतेदेखते हैं। २००५ हेट्ठिम-मज्झिमगेवेज्जगदेवा अहे छट्ठए तमाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते? [२००५] निचले और मध्यम ग्रैवेयकदेव नीचे छठी तमःप्रभापृथ्वी के निचले चरमान्त पर्यन्त क्षेत्र को जानते-देखते हैं। २००६. उवरिमगेवेजगदेवा णं भंते ! केवतियं खेत्तं ओहिणा जाणंति पासंति ? गोयमा! जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजतिभागं, उक्कोसेणं अहेसत्तमाए पुढवीए हेट्ठिल्ले चरिमंते,
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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