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गोयमा! आहारगा वि अणाहारगा वि, एगो भंगो।
[१८७९ प्र.] भगवन्! (बहुत) असंज्ञी जीव आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ?
[१८७९ उ.] गौतम! वे आहारक भी होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। इनमें केवल एक ही भंग होता है। १८८०. [१] असण्णी णं भंते! णेरड्या किं आहारगा अणाहारगा ?
[ अट्ठाईसवाँ आहारपद ]
गोयमा ! आहारगा वा १ अणाहारगा वा २ अहवा आहारए य अणाहारए य ३ अहवा आहारए य अणाहारगा य ४ अहवा आहारगा य अणाहारगे य ५ अहवा आहरगा य अणाहारगा य ६, एवं एते छब्भंगा । [१८८०-१ प्र.] भगवन्! (बहुत) असंज्ञी नैरयिक आहारक होते हैं या अनाहारक होते हैं ? [१८८० - १ उ.] गौतम वे (१) सभी आहारक होते हैं, (२) सभी अनाहारक होते हैं। (३) अथवा एक आहारक और एक अनाहारक, (४) अथवा एक आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं, (५) अथवा बहुत आहारक और एक अनाहारक होता है तथा (६) अथवा बहुत आहारक और बहुत अनाहारक होते हैं।
[२] एवं जाव थणियकुमारा ।
[१८८०-२] इसी प्रकार स्तनितकुमार पर्यन्त जानना चाहिए।
[३] एगिंदिए अभंगयं ।
[१८८०-३] एकेन्द्रिय जीवों में भंग नहीं होता।
[ ४ ] बेइंदिय जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणिएसु तियभंगो ।
[१८८०-४] द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रियतिर्यञ्च तक के जीवों में पूर्वोक्त कथन के समान तीन भंग कहने
चाहिए ।
[५] मणूस-वाणमंतरेसु छब्भंगा ।
[१८८०-५] मनुष्यों और वाणव्यन्तर देवों में (पूर्ववत्) छह भंग कहने चाहिए।
१८८१. [१] णोसण्णी - णोअसण्णी णं भंते! जीवे कि आहारए अणाहारए ?
गोयमा! सिय आहारए सिय अणाहारए ।
[१८८१-१ प्र.] भगवन्! नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी जीव आहारक होता है या अनाहारक होता है ? [१८८१ - १ उ.] गौतम ! वह कदाचित् आहारक और कदाचित् अनाहारक होता है। [२] एवं मणूसे वि ।
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[१८८१-२] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में भी कहना चाहिए।
[ ३ ] सिद्धे अणाहारए।
[१८८१-३] सिद्ध जीव अनाहारक होता है।