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________________ १२२] [अट्ठाईसवाँ आहारपद] ग्रैवेयक देव छव्वीस हजार वर्ष सत्ताईस हजार वर्ष मध्यम-उपरिम ग्रैवेयक देव सत्ताईस हजार वर्ष अट्ठाईस हजार वर्ष उपरिम-अधस्तन ग्रैवेयक देव अट्ठाईस हजार वर्ष उनतीस हजार वर्ष उपरिम-मध्यम ग्रैवेयक देव उनतीस हजार वर्ष तीस हजार वर्ष उपरिम-उपरिम ग्रैवेयक देव तीस हजार वर्ष इकतीस हजार वर्ष २२. विजय-वैजयन्त-जयन्त अपराजित देव इकतीस हजार वर्ष तेतीस हजार वर्ष सर्वार्थसिद्ध देव अजघन्य अनुत्कृष्ट तेतीस हजार वर्ष नौवाँ : एकेन्द्रियशरीरादिद्वार १८५३. णेरइया णं भंते! किं एगिदियसरीराइं आहारेंति जाव पंचेंदियसरीराइं आहरेंति ? गोयमा! पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एगिदियसरीराइं पि आहारेंति जाव पंचेंदियसरीराइं पि, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा पंचेंदियसरीराइं आहारैति। [१८५३ प्र.] भगवन् ! क्या नैरयिक एकेन्द्रियशरीरों का यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं? . [१८५३ उ.] गौतम! पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से वे एकेन्द्रियशरीरों का भी आहार करते हैं, यावत् पंचेन्द्रियशरीरों का भी तथा वर्तमानभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से नियम से वे पंचेन्द्रियशरीरों का आहार करते हैं। १८५४. एवं जाव थणियकुमारा। [१८५४] (असुरकुमारों से लेकर) स्तनितकुमारों तक इसी प्रकार (समझना चाहिए।) १८५५. पुढविक्काइयाणं पुच्छा। गोयमा! पुव्वभावपण्णवणं पडुच्च एवं चेव, पडुप्पण्णभावपण्णवणं पडुच्च णियमा एगिंदियसरीराइं आहारेंति। [१८५५ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिकों के विषय में पूर्ववत् प्रश्न है। __ [१८५५ उ.] गौतम! पूर्वभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से नारकों के समान वे एकेन्द्रिय से पंचेन्द्रिय तक का आहार करते हैं। वर्तमानभावप्रज्ञापना की अपेक्षा से नियम से वे एकेन्द्रिय शरीरों का आहार करते हैं। १. (क) प्रज्ञापना, मलयवृत्ति, अ.रा. कोष ५०६ (ख) प्रज्ञापना, प्रमेयबोधिनी टीका भा. ५, पृ. ५९२-६०२
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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