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________________ १२०] [ अट्ठाईसवाँ आहारपद ] [१८४८ प्र.] भगवन् ! उपरिम- अधस्तन ग्रैवेयकों की आहारेच्छा - सम्बन्धी पृच्छा है। [१८४८ उ.] गौतम! जघन्य २८ हजार वर्ष में और उत्कृष्ट २९ हजार वर्ष में उन्हें आहार करने की इच्छा उत्पन्न होती है। १८४९. उवरिममज्झिमाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं एक्कूणतीसाए, उक्कोसेणं तीसाए । [१८४९ प्र.] भगवन्! उपरिम- मध्यम ग्रैवेयकों को आहारेच्छा कितने काल में उत्पन्न होती है ? [१८४९ उ.] गौतम! जघन्य २९ हजार वर्षों में और उत्कृष्ट ३० हजार वर्षो में उन्हें आहारेच्छा उत्पन्न होती है। १८५०. उवरिमउवरिमगेवेज्जगाणं पुच्छा । गोयमा! जहण्णेणं तीसाए, उक्कोसेणं एक्कतीसाए । [१८५० प्र.] भगवन् ! उपरिम-उपरिम ग्रैवेयकों को कितने काल में आहारेच्छा उत्पन्न होती है ? [१८५० उ. ] गौतम! जघन्य ३० हजार वर्ष में और उत्कृष्ट ३१ हजार वर्ष में उन्हें आहार करने की इच्छा उत्पन्न होती है। १८५१. विजय - वेजयंत- जयंत अपराजियाणं पुच्छा । गोयमा! जहणेणं एक्कतीसाए, उक्कोसेणं तेत्तीसाए । [१८५१ प्र.] भगवन्! विजय, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित देवों का कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? [१८५१ उ.] गौतम ! उन्हें जघन्य ३१ हजार वर्ष में और उत्कृष्ट ३३ हजार वर्ष में आहारेच्छा उत्पन्न होती है। १८५२. सव्वट्टगदेवाणं पुच्छा । गोयमा! अजहण्णमणुक्कोसेणं तेत्तीसाए वाससहस्साणं आहारट्ठे समुप्पज्जति । [१८५२ प्र.] भगवन्! सर्वार्थक (सर्वार्थसिद्ध) देवों को कितने काल में आहार की अभिलाषा उत्पन्न होती है ? [१८५२ उ.] गौतम! उन्हें अजघन्य - अनुत्कृष्ट (जघन्य उत्कृष्ट के भेद से रहित) तेतीस हजार वर्ष में आहार की इच्छा उत्पन्न होती है। 4 — विवेचन - वैमानिक देवों की आहार सम्बन्धी वक्तव्यता • वैमानिक देवों की वक्तव्यता ज्योतिष्क देवों के समान समझनी चाहिए, किन्तु इसमें विशेषता यह है कि वैमनिक देवों को आभोगनिर्वर्तित आहार की इच्छा जघन्य दिवस-पृथक्त्व में होती है, और उत्कृष्ट ३३ हजार वर्षों में । ३३ हजार वर्षों में आहार की इच्छा का जो विधान किया गया है, वह अनुत्तरोपपातिक देवों की अपेक्षा से समझना चाहिए। शेष कथन जैसा असुरकुमारों के विषय में किया गया है, वैसा ही वैमानिकों के विषय में जान लेना चाहिए।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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