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________________ पंचवीसइमं कम्मबंधवेयपयं पच्चीसवां कर्मबन्धवेदपद जीवादि द्वारा ज्ञानावरणीयादि कर्मबन्ध के समय कर्म-प्रकृतिवेद का निरूपण १७६९. [१] कति णं भंते! कम्मपगडीओ पण्णत्ताओ ? गोयमा! अट्ठ कम्मपगडीओ पण्णत्तओ। तं जहा – णाणावरणिजं जाव अंतराइयं। [१७६९-१.प्र.] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी कही गई हैं ? [१७६९-१ उ.] गौतम! कर्मप्रकृतियाँ आठ कही गई हैं, यथा – ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। [२] एवं णेरइयाणं जाव वेमाणियाणं। [१७६९-२] इसी प्रकार नैरयिकों (से लेकर) यावत् वैमानिकों तक (के ये ही आठ कर्मप्रकृतियाँ कही गई है। १७७०.[१] जीवे णं भंते! णाणावरणिजं कम्मं बंधमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेइ ? गोयमा! णियमा अट्ठ कम्मपगडीओ वेदेइ । [१७७०-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावयरणीयकर्म का बन्ध करता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता [१७७०-१ उ.] गौतम! वह नियम से आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है। [२] एवं णेरइए जाव वेमाणिए। [१७७०-२] इसी प्रकार (एक) नैरयिक से लेकर एक वैमानिक पर्यन्त (जीवों मे इन्हीं आठ कर्मप्रकृतियों का वेदन जानना चाहिए)। १७७१. एवं पुहत्तेण वि। [१७७१] इसी प्रकार बहुत (नारकों से लेकर बहुत वेमानिकों तक) के विषय में (कहना चाहिए)। १७७२.एवं वेयणिजवजं जाव अंतराइयं। [१७७२] वेदनीयकर्म को छोडकर शेष सभी (छह) कर्मों के सम्बन्ध में इसी प्रकार (ज्ञानावरणीयकर्म के समान जानना चाहिए)। १७७३. [१] जीवे णं भंते! वेयणिजं कम्मं बंधमाणे कइ कम्मपगडीओ वेएइ ? गोयमा! सत्तविहवेयए वा अट्ठविहवेयए वा चउव्विहवेयए वा।
SR No.003458
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1986
Total Pages411
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size25 MB
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