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________________ ६६ ] [प्रज्ञापनासूत्र बहुवचनान्त जो शब्द हैं, वह सब क्या बहुत्वप्रतिपादक वाणी है ? इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य आदि पूर्वोक्त शब्द जातिवाचक है और जाति का अर्थ है - सामान्य । सामन्य के लिए कहा जाता है कि वह एक होता है तथा नित्य, निरवयव, अक्रिय और सर्वव्यापी होता है। ऐसी स्थिति में ये जातिवाचक शब्द बहुवचनान्त कैसे हो सकते हैं ? जबकि इन शब्दों का प्रयोग बहुवचन में देखा गया है। यही इस पृच्छा का कारण है। भगवान् के उत्तर का आशय यह है कि 'मनुष्याः' से लेकर 'चिल्ललकाः' तक जो बहुवचनान्त शब्द है, वह सब बहुत्वप्रतिपादिका वाणी है। इसका कारण यह है कि यद्यपि पूर्वोक्त मनुष्याः' आदि शब्द जातिवाचक हैं, तथापि जाति सदृश परिणामरूप होती है और सदृश परिणाम विसदृश परिणाम का अविनाभावी होता है: अर्थात् सामान्यपरिणाम और असमानपरिणाम या सदृशता और विसदृशता साथ-साथ ही रहते हैं और दोनों में कथंचित् अभेद भी है। अतः जब असमानपरिणाम से युक्त समानपरिणाम की प्रधानता से विवक्षा की जाती है और असमानपरिणाम प्रत्येक व्यक्ति (विशेष) में भिन्न-भिन्न होता है: अतएव जब उसका कथन किया जाता है, तब बहुवचन-प्रयोग संगत ही है, जैसे - 'घटाः' इत्यादि बहुवचन के समान। जब केवल एक ही समानपरिणाम की प्रधानता से विवक्षा की जाती है, और असमानपरिणाम को गौण कर दिया जाता है, तब सर्वत्र समानपरिणाम एक ही होता है, अतएव उसके प्रतिपादन करने में एकवचन का प्रयोग भी संगत है, जैसे - 'सर्व घट पृथुबुनोदराकार (मोटा और गोल पेट के आकार का) होता है।' यहाँ 'मनुष्याः' इत्यादि शब्दप्रयोगों में असमानपरिणाम से युक्त समानपरिणाम की ही प्रधानता से विवक्षा की गई है और असमानपरिणाम अनेक होता है। इस कारण यहाँ बहवचन का प्रयोग उचित है। (३) सत्र ८५१ में प्ररूपित प्रश्र का आशय यह है कि से लेकर चिल्ललिका' तक तथा इसी प्रकार के अन्य 'आ' एवं 'ई' अन्त वाले जितने भी शब्द हैं. क्या वे सब स्त्रीवचन है ? अर्थात् - यह सब क्या स्त्रीत्व की प्रतिपादिका भाषा है ? इस पृच्छा का तात्पर्य यह है कि यहाँ सर्व वस्तु त्रिलिंगी है। जैसे - यह (अयं) मतरूप:' (मिट्टी के रूप में परिणत) है. यहाँ पल्लिंग है, (इयं) मृत्परिणति घटाकार परिणति है' यहाँ स्त्रीलिंग है, और '(इदं) वस्तु' है, यहाँ नपुंसकलिंग है। इस प्रकार यहाँ एक ही वाच्य को तीनों लिंगों के प्रतिपादक वचनों द्वारा प्रतिपादित किया गया है। ऐसी स्थिति में केवल एक स्त्रीलिंग मात्र का प्रतिपादक शब्द तीनों लिंगों के द्वारा प्रतिपाद्य वस्तु का यथार्थरूप में वाचक कैसे हो सकता है ? 'नरसिंह' शबद में केवल 'नर' शब्द या केवल 'सिंह' शब्द दोनों, - नर एवं सिंह - का वाचक नहीं हो सकता, किन्तु लोकव्यवहार में स्त्रीलिंग शब्द अपने-अपने वाच्य के वाचक देखे जाते हैं। अत: प्रश्न होता है कि क्या इस प्रकार के सभी वचन स्त्रीत्व के प्रतिपादक होते हैं ? भगवान् का उत्तर 'हाँ' में है। मानुषी से लेकर चिल्लिका तक तथा इसी प्रकार के अन्य 'आ' 'ई' अन्त वाले शब्द स्त्रीवचन हैं, अर्थात् – स्त्रीलिंगविशिष्ट अर्थ के प्रतिपादक हैं। इसका भावार्थ इस प्रकार है - यद्यपि वस्तु अनेक धर्मात्मक होती है, तथापि शब्दशास्त्र का न्याय यह है कि जिस धर्म से विशिष्ट वस्तु का प्रतिपादन करना इष्ट होता है, उसे मुख्य करके उसी धर्म से विशिष्ट धर्मों का प्रतिपादन किया जाता है, उसके सिवाय शेष जो भी धर्म होते हैं, उन्हें गौण करके अविवक्षित कर दिया जाता है। जैसे - किसी पुरुष में पुरुषत्व भी है, शास्त्रज्ञता भी है, दातृत्व, भोक्तृत्व,
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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