SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ग्यारहवाँ भाषापद [६३ ८५२. अह भंते ! मणुस्से जाव चिल्ललए जे यावऽन्ने तहप्पगारा सव्वा सा पुमवयू ? हंता गोयमा ! मणुस्से महिसे आसे हत्थी सीहे वग्घे वगे दीविए अच्छे तरच्छे परस्सरे सियाले विराले सुणए कोलसुणए कोक्कंतिए ससए चित्तए चिल्ललए जे यावऽण्णे तहप्पगारा सव्वा सा पुमवयू। [८५२ प्र.] भगवन् ! मनुष्य से लेकर यावत् चिल्ललक तक तथा जो अन्य भी इसी प्रकार के प्राणी (नर जीव) हैं, क्या वे सब पुरुषवचन (पुल्लिंग) हैं ? [८५२ उ.] हाँ, गौतम ! मनुष्य, महिष, (भैंसा), अश्व, हाथी, सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, दीपड़ा रीछ तरक्ष, पाराशर (गैंडा), सियार, विडाल, (बिलाव), कुत्ता, शिकारीकुत्ता, कोकन्तिक, (लोमड़ा), शशक (खरगोश), चीता और चिल्ललक तथा ये और इसी प्रकार के अन्य जो भी प्राणी हैं, वे सब पुरुषवचन (पुल्लिंग) हैं। ८५३. अह भंते ! कंसं कंसोयं परिमंडल सेलं थूभं जालं थालं तारं रूवं अच्छि पव्वं कुंडं पउमं दुद्धं दहियं णवणीयं आसणं सयणं भवणं विमाणं छत्तं चामरं भिंगारं अंगणं निरंगणं आभरणं रयणं जे यावऽण्णे तहप्पगारा सव्वं तं णपुंसगवयू ? हंता गोयमा ! कंसं जाव रयणं जे यावऽण्णे तहप्पगारा सव्वं तं णपुंसगवयू। [८५३ प्र.] भगवन् ! कांस्य (कांसा), कंसोक (कसोल), परिमण्डल, शैल, स्तूप, जाल, स्थाल, तार, रूप, अक्षि, (नेत्र), पर्व (पोर), कुण्ड, पद्म, दुग्ध (दूध), दधि (दही), नवनीत (मक्खन), आसन, शयन, भवन, विमान, छत्र, चामर, शृंगार, अंगन (आंगन), निरंगन (निरंजन), आभरण (आभूषण) और रत्न, ये और इसी प्रकार के अन्य जितने भी (शब्द) हैं, वे सब क्या (संस्कृत-प्राकृत भाषानुसार) नपुंसकवचन (नपुंसकलिंग) [८५३ उ.] हाँ, गौतम ! कांस्य से लेकर रत्न तक (तथा) इसी प्रकार के अन्य जितने भी (शब्द) हैं, वे सब नपुंसकवचन हैं। ८५४. अह भंते ! पुढवीति इत्थीवयू आउ त्ति पुमवयू, धण्णे त्ति णपुंसगवयू, पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? । ___ हंता गोयमा ! पुढवी त्ति इत्थिवयू आउ त्ति पुमवयू, धण्णे त्ति णपुंसगवयू पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा। [८५४ प्र.] भगवन् ! पृथ्वी यह (शब्द) स्त्रीवचन (स्त्रीलिंग) है, आउ (पानी) यह (शब्द) पुरुषवचन (पुल्लिंग) है और धान्य, यह (शब्द) नपुंसकवचन (नपुंसकलिंग) है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? क्या यह भाषा मृषा नहीं है ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy