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________________ ५४ ] [ प्रज्ञापनासूत्र [८३६ प्र.] भगवन् ! जो जाति में स्त्रीवचन है, जाति में पुरुषवचन है और जाति में नपुंसकवचन है, क्या यह प्रज्ञापनी भाषा है ? यह भाषा मृषा नहीं है ? [८३६ उ.] गौतम ! जाति में स्त्रीवचन, जाति में पुरुषवचन, अथवा जाति में नपुंसकवचन, यह प्रज्ञापनी भाषा है और यह भाषा मृषा नहीं है। ८३७. अह भंते ! जाईइ इत्थिआणमणी जाईइ पुमआणमणी जाईइ णपुंसगाणमणी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा? . हंता गोयमा ! जाईइ इत्थिआणमणी जाईइ पुमआणमणी जाईइ णपुंसगाणंमणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा । - [८३७ प्र.] भगवन् ! अब प्रश्न यह है कि जाति में जो स्त्री-आज्ञापनी है, जाति में जो पुरुष-आज्ञापनी है अथवा जाति में जो नपुसंक-आज्ञापनी है, क्या यह प्रज्ञापनी भाषा है ? यह भाषाा मृषा नहीं है ? [८३७ उ.] हाँ, गौतम ! जाति में जो स्त्री-आज्ञापनी है, जाति में जो पुरुष-आज्ञापनी है, या जाति में जो नपुसंक-आज्ञापनी है, यह प्रज्ञापनी भाषा है और यह भाषा मृषा (असत्य) नहीं है। ८३८. अह भंते ! जाईइ इत्थिपण्णवणी जाईइ पुमपण्णवणी जाईइ णपुंसगपण्णवणी पण्णवणी णं एसा भासा ? ण एसा भासा मोसा ? हंता गोयमा ! जाईइ इत्थिपण्णवणी जाईइ पुमपण्णवणी जाईइ णपुंसगपण्णवणी पण्णवणी णं एसा भासा, ण एसा भासा मोसा । [८३८ प्र.] भगवन् ! इसके अनन्तर प्रश्न है - जाति में जो स्त्री-प्रजापनी है, जाति में जो पुरुष-प्रज्ञापनी है, अथवा जाति में जो नपुंसक-प्रजापनी है, क्या यह भाषा प्रज्ञापनी है ? यह भाषा मृषा तो नहीं है ? [८३८ उ.] हाँ, गौतम ! जाति में जो स्त्री-प्रजापनी है, जाति में जो पुरुष-प्रज्ञापनी है, अथवा जाति में जो नपुंसक-प्रजापनी है, यह भाषा प्रज्ञापनी है और यह भाषा मृषा तो नहीं है । विवेचन - विविध पहलुओं से प्रज्ञापनी भाषा की प्ररूपणा - प्रस्तुत सात सूत्रों (सूत्र ८३२ से ८३८ तक) में विविध पशु पक्षी नाम-प्रज्ञापना, स्त्री आदि वचन-निरूपण, स्त्री आदि आज्ञापनी, स्त्री आदि प्रज्ञापनी, जाति में स्त्री आदि वचन प्रज्ञापक, जाति में स्त्री आदि आज्ञापनी तथा जाति में स्त्री आदि प्रज्ञापनी, इन विविध पहलुओं से प्रज्ञापनी सत्यभाषा का प्रतिपादन किया गया है। _ 'प्रज्ञापनी' भाषा का अर्थ - जिससे अर्थ (पदार्थ) का प्रज्ञापन - प्ररूपण या प्रतिपादन किया जाए, उसे 'प्रज्ञापनी भाषा' कहते हैं। इसे प्ररूपणीया या अर्थप्रतिपादिनी भी कह सकते हैं। सप्तसूत्रोक्त प्रज्ञापनी भाषा किस-किस प्रकार की और सत्य क्यों ? - (१) सू. ८३२ में निरूपित
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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