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________________ एक्कारसमं भासापयं ग्यारहवाँ भाषापद प्राथमिक 2. यह प्रज्ञापनासूत्र का ग्यारहवाँ भाषापद' है । भाषापर्याप्त जीवों को अपने मनोभाव प्रकट करने के लिए भाषा एक मुख्य माध्यम है, इसके विना विचारों का आदान-प्रदान, शास्त्रीय एवं व्यावहारिक अध्ययन तथा ज्ञानोपार्जन में कठिनता होती है। मन के बाद 'वचन' बहुत बड़ा साधन है जीव के लिए। इससे कर्मबन्धन और कर्मक्षय दोनों ही हो सकते हैं, आराधना भी हो सकती है, विराधना भी। इस हेतु से शास्त्रकार ने भाषापद की रचना की है। प्रस्तुत भाषापद में विशेषरूप से यह विचार किया गया है कि भाषा क्या है ? वह अवधारिणीअवबोधबीज है या नहीं? अवधारणी है तो ऐसी अवधारणी भाषा सत्यादि चार प्रकार की भाषाओं में से कौन-सी है ? यदि चारों प्रकार की है, तो कैसे ? विरोधनी भाषा कौन-सी है ? भाषा का मूल स्रोत क्या है ? यदि जीव है तो क्यों ? भाषा की उत्पत्ति कहाँ से और कैसे होती है ? भाषा की आकृति कैसी है ? भाषा का उद्भव और अन्त किस योग से व कहाँ होता है ? भाषाद्रव्य में पुद्गलों का ग्रहण और निर्गमन किस-किस योग से होता है ? भाषा का भाषणकाल कितना है ? भाषा मुख्यतया कितने प्रकार की है ? प्रस्तुत चार प्रकार की भाषाओं में भगवान् द्वारा अनुमत भाषाएँ कितनी हैं ? तथा भाषाओं में प्रतिनियतरूप से समझी जा सके, ऐसी पर्याप्तिका कौन-कौन-सी हैं तथा इससे विपरीत अपर्याप्तिका कौन-कौन-सी हैं ? फिर पर्याप्तिका के सत्या और मृषा इन दो भेदों के प्रत्येक के जनपदसत्यादि तथा क्रोधनिःसृतादि रूप से कमशः दस-दस प्रकार बताए गए हैं । तदनन्तर अपर्याप्तिका के सत्यामृषा और असत्यमृषा ये दो भेद बताकर इनके कमश: दस और बारह भेद बताए गये हैं । तत्पश्चात् समस्त जीवों में कौन-कौन भाषक हैं, कौन अभाषक ? तथा नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक पूर्वोक्त चार भाषाओं में कौन-कौन-सी भाषा बोलते हैं ? इसका स्पष्टीकरण किया गया है । प्रस्तुत पद में बीच में और अन्त में व्यक्ति और जाति की दृष्टि से स्त्री-पुरुष-नपुंसक वचन, स्त्री-पुरुषनपुंसक-प्रज्ञापनी भाषा, प्रज्ञापनी-सत्या है या अप्रज्ञापनी (मृषा) है ? विशिष्ट संज्ञानवान् के अतिरिक्त
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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