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बाईसवाँ क्रियापद ]
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निर्वर्त्तनाधिकरणिकी- खङ्ग, भाला आदि हिंसक शस्त्रों का मूल से निर्माण करना निर्वर्त्तना है । यह संसार को वृद्धिरूप होने से निर्वर्त्तनाधिकरणिकी कहलाती है।
प्राणातिपातक्रिया- किसी प्रकार से आत्महत्या करना, अथवा प्रद्वेषादिवश दूसरों को या दोनों को प्राण से रहित करना, यह त्रिविध प्राणातिपातक्रिया है ।
पारितापनिकी क्रिया : शंका-समाधान - जो तप या अन्य अनुष्ठान अशक्य हो, जिस तप के करने मन में दुर्ध्यान पैदा होता हो, इन्द्रियों की हानि हो, मन-वचन-काया के योग उत्पथ पर चलें या एकदम क्षीण हो जाएँ, वह तपश्चरण या कायकष्ट पारितापनिकी क्रिया में है । परन्तु जिससे दुर्ध्यान न हो, जिसका परिणाम आत्महितकर हो, कर्मक्षय करने की उमंग हो, उन्नत भावना हो, वहाँ पारितापनिकीक्रिया नहीं होती।
जीवों के सक्रियत्व अक्रियित्व की प्ररूपणा
१५७३. जीवा णं भंते ! किं सकिरिया अकिरिया ?
गोयमा ! जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि ।
. से केणट्टेणं भंते ! एवं वुच्चति जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि ?
गोमा ! जीवा दुविहा पण्णत्ता । तं जहा संसारसमावण्णगा य असंसारसमावण्णगा य । तत्थ णं जे ते असंसारसमावण्णगा ते णं सिद्धा, सिद्धा णं अकिरिया । तत्थ णं जे ते संसारसमावण्णगा दुविहा पण्णत्ता, तं जहा- सेलेसिपडिवण्णगा य असेलेसिपडिवण्णगा य ।
तत्थ णं जे ते सेलेसिपडिवण्णगा ते णं अकिरिया ।
तत्थ णं जे ते असेलेसिपडिवण्णग़ा ते णं सकिरिया । से एतेणट्टेणं गोयमा । एवं वुच्चति जीवा सकिरिया वि अकिरिया वि।
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[ १५७३ प्र.] भगवन् ! जीव सक्रिय होते हैं, अथवा अक्रिय (क्रियारहित ) होते हैं ?
[उ.] गौतम ! जीव सक्रिय (क्रिया - युक्त) भी होते हैं और अक्रिय (क्रियारहित) भी होते हैं ।
[प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा गया है कि जीव सक्रिय भी होते हैं और अक्रिय भी होते हैं?
[उ.] गौतम ! जीव दो प्रकार के कहे गए हैं, यथा- संसारसमापन्नक और असंसारसमापन्नक । उनमें से जो असंसारसमापन्नक हैं, वे सिद्ध जीव हैं। सिद्ध (मुक्त) अक्रिय ( क्रियारहित) होते हैं और उनमें से जो संसारसमापन्नक हैं, वे भी दो प्रकार के हैं - शैलेशीप्रतिपन्नक और अशैलेशीप्रतिपन्नक। उनमें से जो शैलेशीप्रतिपन्नक होते हैं, वे अक्रिय हैं और जो अशैलेशी - प्रतिपन्नक होते हैं, वे सक्रिय होते हैं । हे गौतम ! इसी कारण
१. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३६,
२. वही, पत्र ४३६