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________________ इक्कीसवाँ अवगाहमा-संस्थान-पद] [५२५ की) उत्कृष्ट अवगाहना से असंख्यातगुणी है । ___ जघन्योत्कृष्ट अवगाहना की दृष्टि से- सबसे कम औदारिकशरीर की जघन्य अवगाहना है । तैजस और कार्मण, दोनों शरीरों की जघन्य अवगाहना एक समान है, किन्तु औदारिकशरीर की जघन्य अवगाहना की अपेक्षा विशेषाधिक है । (उससे) वैक्रियशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यात गुणी है । (उससे) आहारकशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । आहारकशरीर की जघन्य अवगाहना से उसी की उत्कृष्ट अवगाहना विशेषाधिक है । (उससे) औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है । (उससे) वैक्रियशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है । तैजस और कार्मण दोनों शरीरों की उत्कृष्ट अवगाहना समान है, परन्तु वह वैक्रियशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना से असंख्यातगुणी है । विवेचन - पांचों शरीरों की अवगाहनाओं का अल्पबहुत्व- प्रस्तुत सूत्र (१५६६) में सप्तम द्वार के सन्दर्भ में पांचों शरीरों की जघन्य-उत्कृष्ट अवगाहनाओं के अल्पबहुत्व की विचारणा की गई है । __ अवगाहनाओं के अल्पबहुत्व का आशय - औदारिकशरीर की जघन्य अवगाहना सबसे कम है क्योंकि वह अंगुल के असंख्यातवें भागमात्रप्रमाण होती है । तैजस और कार्मण की जघन्यावगाहना परस्पर तुल्य होते हुए भी औदारिक की जघन्यावगाहना से विशेषाधिक इसलिए है कि मारणानितकसमुद्घात से समवहत जीव जब पूर्वशरीर से बाहर निकले हुए तैजसशरीर की अवगाहना की आयाम (ऊँचाई), बाहल्य (मोटाई) और विस्तार (चौड़ाई) से विचारणा की जाती है, ऐसी स्थिति में जिस प्रदेश में वे जीव उत्पन्न होंगे वह प्रदेश औदारिकशरीर की अवगाहना से प्रमित अंगुल के असंख्यातवें भागप्रमाण, व्याप्त होता है और अतीव अल्प बीच का प्रदेश भी व्याप्त होता है । इसलिए औदारिक की जघन्य अवगाहना से तैजसकार्मणशरीर की जघन्य अवगाहना विशेषाधिक हुई । आहारकशरीर की जघन्य अवगाहना देशोन हस्तप्रमाण और उत्कृष्ट अवगाहना भी एक हाथ की है । उससे औदारिकशरीर की उत्कृष्टावगाहना संख्यातगुणी है, क्योंकि वह सातिरेक सहस्रयोजन प्रमाण है। वैक्रियशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना सातिरेक लक्षयोजन होने से वह इससे संख्यातगुणी अधिक है । तैजस-कार्मणशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना समान होने पर भी वैक्रियशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना से असंख्यातगुणी अधिक है, क्योंकि वह १४ रज्जुप्रमाण है । शेष स्पष्ट है । ॥ प्रज्ञापना भगवती का इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद सम्पूर्ण ॥ १. प्रज्ञापना. मलयवृत्ति, पत्र ४३४-४३५
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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