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[प्रज्ञापनासूत्र
निष्पन्न होता है । उनसे भी कार्मणशरीर प्रदशतः अनन्तगुणे हैं । इस विषय में युक्ति पूर्ववत् समझ लेनी चाहिए । शरीरावगाहना-अल्पबहुत्व-द्वार
१५६६. एतेसि णं भंते ! ओरालिय-वेउव्विय-आहारग-तेया-कम्मगसरीराणं जहणियाए ओगाहणाए उक्कोसियाए ओगाहणाए जहण्णुक्कोसियाए ओगाहणाए कतरे कतरेहितो अप्पा वा४?
गोयमा ! सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स जहणिया ओगाहणा, तेया-कम्मगाणं दोण्ह वितुल्ला जहणिया ओगाहणा विसेसाहिया, वेउव्वियसरीरस्स जहणिया ओगाहणा असंखेजगुणा, आहारगसरीरस्स जहणिया ओगाहणा असंखेजगुणा; उक्कोसियाए ओगाहणाए-सव्वत्थोवा आहारगसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा, ओरालियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेजगुणा, वेउव्वियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा असंखेजगुणा, तेया-कम्मगाणं दोण्ह वितुल्ला उक्कोसिया ओगाहणा असंखेजगुणा; जहण्णुक्कोसियाए ओगाहणाए-सव्वत्थोवा ओरालियसरीरस्स जहणिया ओगाहणा, तेया-कम्मगाणं दोण्ह वि तुल्ला जहणिया ओगाहणा विसेसाहिया, वेउव्वियसरीरस्स जहण्णिया ओगाहणा असंखेजगुणा, आहारगसरीरस्स जहणिया ओगाहणा असंखेज़गुणा, आहारगसरीरस्स जहणियाहिंतो ओगाहणाहिंतो तस्स चेव उक्कोसिया ओगाहणा विसेसाहिया, ओरालियसरीरस्स उक्कोसिया ओगाहणा संखेजगुणा, वेउव्वियसरीरस्स णं उक्कोसिया ओगाहणा संखेजगुणा, तेया-कम्मगाणं दोण्ह वि तुल्ला उक्कोसिया ओगाहणा असंखेजगुणा।
॥पण्णवणाए भगवतीए एगवीसइमं ओगाहणसंठाणपयं समत्तं ॥
। [१५६६ प्र.] भगवन् ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण, इन पांच शरीरों में से, जघन्य-अवगाहना, उत्कृष्ट-अवगाहना एवं जघन्योत्कृष्ट-अवगाहना की दृष्टि से, कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं ?
[उ.] गौतम ! सबसे कम औदारिकशरीर की जघन्य अवगाहना है । तैजस और कार्मण, दोनों शरीरों की अवगाहना परस्पर तुल्य है, (किन्तु औदारिकशरीर की) जघन्य अवगाहना से विशेषाधिक है । (उससे) वैक्रियशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है । (उससे) आहारकशरीर की जघन्य अवगाहना असंख्यातगुणी है ।
उत्कृष्ट अवगाहना की दृष्टि से- सबसे कम आहारकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना होती है । (उससे) औदारिकशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना संख्यातगुणी है । उसकी अपेक्षा वैक्रियशरीर की उत्कृष्ट अवगाहना असंख्यातगुणी है । तैजस और कार्मण, दोनों की उत्कृष्ट अवगाहना परस्पर तुल्य है, (किन्तु वैक्रियशरीर
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वही, पत्र ४३४