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________________ इक्कीसवाँ अवगाहना-संस्थान-पद] [ ४८१ [१५१८-६ प्र.](भगवन् !) यदि स्थलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है ? तो क्या पर्याप्तक-स्थलचर या अपर्याप्तक-स्थलचर.....तिर्यञ्चपंचेन्द्रियों के होता है ? अथवा चतुष्पद-स्थलचर....तिर्यञ्च-पंचेन्द्रियों के होता है या फिर उर:-परिसर्प-पर्याप्तक अथवा भुजपरिसर्पपर्याप्तक-स्थलचर..........यावत् तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है ? __[उ.] गौतम ! (पर्याप्तक) चतुष्पद-(स्थलचर.....तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों) के भी (वैक्रिय) शरीर (होता है,) यावत् परिसर्प (उरः परिसर्प एवं भुजपरिसर्प.....तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों) के भी (वैक्रिय) शरीर (होता है ।) [७] एवं सव्वेसिंणेयं जाव खहयराणं, णो अपज्जत्ताणं । [१५१८-७ प्र.] इसी प्रकार खेचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर जान लेना चाहिए, (विशेष यह है कि) खेचर-पर्याप्तकों के वैक्रियशरीर होता है, अपर्याप्तकों के नहीं होता है । १५७९. [१] जदि मणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं सम्मूच्छिममणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे गब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? गोयमा ! णो सम्मूच्छिममणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, गब्भवक्वंतियमणूस-पंचेंदियवेउव्वियसरीरे । [१५१९-१ प्र.](भगवन् !) यदि मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या सम्मूछिममनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, अथवा गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है ? । [उ.] गौतम ! सम्मूछिम-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर नहीं होता, (किन्तु) गर्भज-मनुष्यपंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है । [२] जदि गब्भवक्कं तियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं कम्मभूमगगब्भवक्वंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे अकम्मभूमगगब्भवक्कंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे अंतरदीवयगब्भवक्वंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे ? ___गोयमा ! कम्मभूमगगब्भवक्त्रंतियमणूसपंचेंदियवेउव्वियसरीरे, णो अकम्मभूमगगब्भवक्वंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे नो अंतरदीवयगब्भववंतियमणूसपंचेंदियवेउब्वियसरीरे य। __ [१५१९-२ प्र.](भगवन् !) यदि गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या कर्मभूमिकगर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, अकर्मभूमिक-गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, अथवा अन्तरद्वीप-गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है ?
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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