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________________ ४८० ] [ प्रज्ञापनासूत्र जलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे थलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे खहयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? गोयमा ! जलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि, थलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि, खहयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे वि। . [१५१८-४ प्र.](भगवन् !) यदि संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है,स्थलचरसंख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है अथवा खेचर-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिकपंचेन्द्रियों के भी वैक्रियशरीर होता है ? [उ.] गौतम ! जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, स्थलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तथा खेचरसंख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है । [५] जदि जलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे किं पजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्त्रंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे अपजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे ? ... गोयमा ! पजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउब्वियसरीरे णो अपजत्तगजलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियवेउव्वियसरीरे । __ [१५१८-५ प्र.](भगवन् !) यदि जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है तो क्या पर्याप्तक-जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, अथवा अपर्याप्तक-जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है? [उ.] गौतम ! पर्याप्तक-जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर होता है, (किन्तु) अपर्याप्तक-जलचर-संख्यातवर्षायुष्क-गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियों के वैक्रियशरीर नहीं होता है। [६] जदि थलयरसंखेजवासाउयगब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदिय जाव सरीरे किं चउप्पय जाव सरीरे परिसप्प जाव सरीरे ? गोयमा ! चउप्पय जाव सरीरे वि परिसप्प जाव सरीरे वि ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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