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[ प्रज्ञापनासूत्र
[१४९७-२ प्र.] भगवन् ! सम्मूर्च्छिम-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ?
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[उ.] गौतम ! (वह) हुंडक संस्थान वाला कहा गया है। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (सम्मूर्च्छिमतिर्यञ्चपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) का (संस्थान) भी (हुण्डक ही समझना चाहिए।)
[ ३ ] गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तं जहा - समचउरंसे जाव हुंडसंठाणसंठिए । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि३ । एवमेते तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा ।
[१४९७-३ प्र.] भगवन् ! गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ?
[उ.] गौ म ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, यथा- समचतुरस्त्रसंस्थान से लेकर संस्थान तक। इस प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (गर्भज - तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरों) के भी (ये छह संस्थान समझने चाहिए।)
इस प्रकार औधिक (सामान्य) तिर्यञ्चयोनिकों (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरों के संस्थानों) के ये (पूर्वोक्त) नौ आलापक समझने चाहिए।
१४९८. [ १ ] जलयरतिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ?
गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तं जहा - समचउरंसे जाव हुंडे |
[१४९८- १ प्र.] भगवन् ! जलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ?
[उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, जैसे- समचतुरस्र यावत् हुण्डक संस्थान ।
[ २ ] एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि ।
[१४९८-२] इसी प्रकार पर्याप्त, अपर्याप्तक ( जलचर-1 र- तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरों) के भी संस्थान (छहों प्रकार के) समझने चाहिए ।
,[ ३ ] सम्मुच्छिमजलयरा हुंडसंठाणसंठिया । एतेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्तगा वि एवं चेव ।