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________________ [ प्रज्ञापनासूत्र [१४९७-२ प्र.] भगवन् ! सम्मूर्च्छिम-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? ४६४ ] [उ.] गौतम ! (वह) हुंडक संस्थान वाला कहा गया है। इसी प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (सम्मूर्च्छिमतिर्यञ्चपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर) का (संस्थान) भी (हुण्डक ही समझना चाहिए।) [ ३ ] गब्भवक्कंतियतिरिक्खजोणियपंचेंदियओरालियसरीरे णं भंते! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तं जहा - समचउरंसे जाव हुंडसंठाणसंठिए । एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि३ । एवमेते तिरिक्खजोणियाणं ओहियाणं णव आलावगा । [१४९७-३ प्र.] भगवन् ! गर्भज-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौ म ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, यथा- समचतुरस्त्रसंस्थान से लेकर संस्थान तक। इस प्रकार पर्याप्तक, अपर्याप्तक (गर्भज - तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरों) के भी (ये छह संस्थान समझने चाहिए।) इस प्रकार औधिक (सामान्य) तिर्यञ्चयोनिकों (तिर्यञ्च-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरों के संस्थानों) के ये (पूर्वोक्त) नौ आलापक समझने चाहिए। १४९८. [ १ ] जलयरतिरिक्खजोणिय-पंचेंदिय-ओरालियसरीरे णं भंते ! किंसंठाणसंठिए पण्णत्ते ? गोयमा ! छव्विहसंठाणसंठिए पण्णत्ते । तं जहा - समचउरंसे जाव हुंडे | [१४९८- १ प्र.] भगवन् ! जलचर - तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर किस संस्थान वाला कहा गया है ? [उ.] गौतम ! (वह) छहों प्रकार के संस्थान वाला कहा गया है, जैसे- समचतुरस्र यावत् हुण्डक संस्थान । [ २ ] एवं पज्जत्तापज्जत्ताण वि । [१४९८-२] इसी प्रकार पर्याप्त, अपर्याप्तक ( जलचर-1 र- तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरों) के भी संस्थान (छहों प्रकार के) समझने चाहिए । ,[ ३ ] सम्मुच्छिमजलयरा हुंडसंठाणसंठिया । एतेसिं चेव पज्जत्तापज्जत्तगा वि एवं चेव ।
SR No.003457
Book TitleAgam 15 Upang 04 Pragnapana Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorShyamacharya
AuthorMadhukarmuni, Gyanmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1984
Total Pages545
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_pragyapana
File Size11 MB
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